नई दिल्ली: अयोध्या के राम मंदिर-बाबरी मस्जिद मामले में बुधवार को सुनवाई पूरी हो गई. सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों की संविधान पीठ ने 40 दिन तक विस्तार से सभी पक्षों को सुना. यह सुप्रीम कोर्ट के इतिहास में अब तक की दूसरी सबसे लंबी चली सुनवाई है. सबसे लंबी सुनवाई का रिकॉर्ड 1973 के केशवानंद भारती केस का है, जिसमें 68 दिनों तक सुनवाई चली थी.


फैसला कब आएगा?
सुनवाई पूरी होने के बाद अब सभी को फैसलों का इंतजार है. ज्यादा संभावना है कि 30 दिनों के भीतर फैसला आ जाएगा. मामले की सुनवाई करने वाली बेंच (पीठ) के अध्यक्ष चीफ जस्टिस (सीजेआई) रंजन गोगोई 17 नवंबर को रिटायर होने वाले हैं. सुप्रीम कोर्ट के नियमों के तहत इससे पहले फैसला आना तय है. 16 नवंबर को शनिवार है और 17 नवंबर को रविवार है. ऐसे में फैसला इन दो तारीखों से पहले आ सकता है.




विवाद क्या है जिसपर आना है फैसला?
सुनवाई अयोध्या की जमीन को लेकर हुई. साल 2010 में इलाहाबाद हाई कोर्ट ने अपने फैसले में 2.77 एकड़ भूमि को तीन पक्षों (सुन्नी वक्फ बोर्ड, निर्मोही अखाड़ा और रामलला विराजमान) में बांटने का आदेश दिया था. इसी फैसले के खिलाफ सभी पक्ष सुप्रीम कोर्ट चले गए. कोर्ट इस मसले पर अपना फैसला देगा.


कल क्या हुआ?
बुधवार सुबह करीब 10:35 पर जब चीफ जस्टिस रंजन गोगोई की अगुवाई वाली पांच जजों की बेंच बैठी, तो यह साफ कर दिया कि आज (बुधवार शाम पांच बजे तक) सुनवाई हर हाल में पूरी कर ली जाएगी. मामले में अलग से अर्जी दाखिल करने वाले कुछ पक्षकारों को जिरह के लिए वक्त देने से मना करते हुए चीफ जस्टिस ने कहा, “बहुत हो चुका. इस मामले पर अब और सुनवाई नहीं हो सकती. हम समझते हैं कि सभी पक्ष अपनी बातें कह चुके हैं. आज शाम जब हम दिन की कार्यवाही खत्म करके उठेंगे, तब मामले को भी की सुनवाई भी बंद कर दी जाएगी.''


‘मुस्लिम ज़मीन के मालिक नहीं’
इसके बाद सभी पक्षकारों ने तेजी से अपनी बात रखनी शुरू कर दी. रामलला विराजमान पक्ष के सी एस वैद्यनाथन ने मुस्लिम पक्ष की बातों का जवाब देते हुए कहा, “पैगंबर मोहम्मद ने एक बार कहा था कि किसी को मस्जिद उसी जमीन पर बनानी चाहिए जिसका वह मालिक हो. मुस्लिम पक्ष अयोध्या की जमीन पर मालिकाना हक साबित नहीं कर पाया है. कुछ समय नमाज पढ़े जाने को आधार बनाकर जमीन का मालिक बनने की कोशिश कर रहा है.’’


इसके बाद मामले में 1950 में याचिका दाखिल करने वाले पहले याचिकाकर्ता स्वर्गीय गोपाल सिंह विशारद के लिए रंजीत कुमार, महंत धर्मदास के लिए जयदीप गुप्ता जैसे वकीलों ने अपनी बातें रखीं. अखिल भारतीय हिंदू महासभा की तरफ से विकास सिंह जिरह के लिए खड़े हुए तो विवाद की स्थिति बन गई.


धवन ने नक्शा फाड़ा
विकास सिंह ने पूर्व आईपीएस किशोर कुणाल की किताब ‘अयोध्या रिविजिटेड’ का हवाला देना चाहा. मुस्लिम पक्ष के वकील राजीव धवन में इसका यह कहते हुए विरोध किया कि किताब कोर्ट के रिकॉर्ड का हिस्सा नहीं है. इसके बाद विकास सिंह ने उसी किताब में छपे अयोध्या के एक नक्शे को कोर्ट में रखा.


इस नक्शे को दूसरे दस्तावेजों से मिलाते हुए सिंह विवादित जगह पर ही भगवान राम का जन्म स्थान होने की दलील देना चाहते थे. लेकिन धवन ने उन्हें सौंपी गई नक्शे की कॉपी को फाड़ दिया. उन्होंने कहा कि नक्शा उसी किताब से लिया गया है जो रिकॉर्ड का हिस्सा नहीं. पांच जजों की बेंच धवन को ऐसा करते हुए हैरानी से देखती रही. चीफ जस्टिस ने तंज भरे लहजे में कहा, “इतने ही क्यों? आप और टुकड़े कर दीजिए.''


‘हिंदुओं की अटूट आस्था’
इसके बाद विकास सिंह ने विवादित इमारत के बाहर 1858 में अंग्रेजों के रेलिंग बना देने का जिक्र किया. उन्होंने कहा, “तिरुपति के मंदिर में जब हम जाते हैं, तो एक तय सीमा से आगे बढ़ने की इजाजत नहीं होती. हम एक तय दूरी से ही भगवान बालाजी की पूजा करते हैं और लौट जाते हैं. उसी तरह से हिंदू रेलिंग के बाहर खड़े होकर जन्म स्थान की पूजा किया करते थे. इमारत के बनने या बाद में रेलिंग के बन जाने से उनकी आस्था पर कोई असर नहीं पड़ा था.


कोर्ट की नाराजगी
विकास सिंह की जिरह के दौरान बीच-बीच में बोल रहे दूसरे वकीलों पर चीफ जस्टिस ने नाराजगी जताई. उन्होंने कहा, “सब का यही रवैया रहना है तो हम सुनवाई को पूरी हुई मान लेते हैं. हमें नहीं लगता कि सुनवाई की जरूरत है. जिसे जो कहना हो, लिख कर दे दे.“ हालांकि, विकास सिंह ने जब कोर्ट से सुनवाई जारी रखने का आग्रह किया तो जज फिर से सुनवाई करने लगे.


निर्मोही ने दावा दोहराया
निर्मोही अखाड़े के तरफ से वकील सुशील कुमार जैन ने एक बार फिर वहां अखाड़े के सेवादार होने के दावे को दोहराया. उन्होंने यह भी कहा कि विवादित इमारत के बन जाने के बाद भी निर्मोही अखाड़ा लगातार वहां पूजा कर रहा था. वह जगह निर्मोही अखाड़े को ही दी जानी चाहिए.


‘मस्ज़िद किसी को नहीं दे सकते’
सुनवाई के अंत में मुस्लिम पक्ष के वकील धवन ने एक बार कहा कि एक बार बनी मस्ज़िद किसी को नहीं सौंपी जा सकती. उन्होंने ढांचा गिराए जाने से पहले की स्थिति बहाल किए जाने की भी मांग की.


मध्यस्थता रिपोर्ट पर चर्चा नहीं
मध्यस्थता पैनल की तरफ से एक रिपोर्ट कोर्ट को सौंपी गई. इसके मुताबिक यूपी सुन्नी वक्फ बोर्ड विवादित ज़मीन के बदले कोई और जगह लेने को तैयार है. इसके बदले में वह चाहता है कि भविष्य में बाकी किसी मस्ज़िद को लेकर इस तरह की मांग न हो. मध्यस्थता समिति की अध्यक्षता सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश एफ एम आई कलीफुल्ला कर रहे हैं और इसमें आर्ट ऑफ लिविंग फाउंडेशन के संस्थापक श्री श्री रवि शंकर तथा वरिष्ठ अधिवक्ता और प्रख्यात मध्यस्थ श्रीराम पंचू शामिल हैं.


इस रिपोर्ट पर कोर्ट में चर्चा नहीं हुई. मुस्लिम पक्षकारों और सुन्नी वक्फ बोर्ड के वकीलों ने पत्रकारों से बात करते हुए ऐसी किसी पेशकश से इनकार किया. उन्होंने कहा, “हो सकता है कि वक्फ बोर्ड के किसी पदाधिकारी ने मध्यस्थता पैनल से कुछ कह हो. लेकिन इस बात का अब अदालती सुनवाई में कोई मतलब नहीं है. कोर्ट ने विस्तार से दलीलें सुनी हैं. उसी के आधार पर फैसला आएगा.
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