बंबई हाईकोर्ट ने गैंगरेप के एक मामले में फैसला सुनाते हुए कहा कि यौन हमले की रिपोर्ट तुरंत पुलिस में दर्ज न कराने का मतलब यह नहीं कि पीड़िता झूठ बोल रही है. कोर्ट ने कहा कि भारतीय महिलाएं ऐसे झूठे आरोप कभी-कभार ही लगाती हैं. हाईकोर्ट ने गैंगरेप के इस मामले में चार दोषियों की सजा बरकरार रखी.

न्यायमूर्ति ए. एम. बदर ने इस हफ्ते के शुरू में दत्तात्रेय कोरडे, गणेश परदेशी, पिंटू खोसकर और गणेश जोले की अपील खारिज कर दी. इन चारों ने अप्रैल 2013 में सुनाए गए सत्र अदालत के उस आदेश को चुनौती दी थी, जिसमें उन्हें गैंगरेप के जुर्म में दस साल जेल की सजा सुनाई गई थी.

इन चारों को 15 मार्च 2012 को एक महिला के साथ सामूहिक दुष्कर्म करने और उसके पुरुष दोस्त से मारपीट करने का दोषी ठहराया गया था. यह घटना तब की थी, जब दोनों पीड़ित नासिक जिले में त्रयंबकेश्वर से लौट रहे थे.

दोषियों ने दावा किया कि उन्हें इस मामले में इसलिए फंसाया गया क्योंकि उन्होंने पीड़िता और उसके दोस्त को आपत्तिजनक हालत में देख लिया था और उन्हें पुलिस के पास ले जाने की धमकी दी थी. उन्होंने कहा कि महिला ने दावा किया कि यह घटना 15 मार्च को हुई, जबकि उसने दो दिन बाद शिकायत दर्ज कराई.

वादियों ने कहा कि मेडिकल जांच में दुष्कर्म की बात से इनकार कर दिया गया क्योंकि महिला के शरीर पर चोट के कोई निशान नहीं थे

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