नई दिल्ली: भारत और रूस ने मंगलवार को भारतीय नौसेना के लिए गोवा में दो मिसाइल युद्धपोतों के निर्माण के लिहाज से 50 लाख डॉलर के सौदे पर हस्ताक्षर किये और अमेरिका की पाबंदियों की चेतावनी के बावजूद उच्चस्तरीय रक्षा सहयोग जारी रखने के स्पष्ट संकेत दिये।
अधिकारियों ने कहा कि रक्षा क्षेत्र की पीएसयू गोवा शिपयार्ड लिमिटेड (जीएसएल) और रूस की सरकारी रक्षा निर्माता रोसोबोरोनएक्सपोर्ट के बीच तलवार श्रेणी के दो युद्धपोतों के निर्माण के लिए करार किया गया। यह समझौता रक्षा सहयोग के लिए सरकार से सरकार के बीच रूपरेखा के तहत किया गया। जहाजों में अत्याधुनिक मिसाइलें और अन्य शस्त्र प्रणालियां लगी होंगी।
जीएसएल के सीएमडी शेखर मित्तल के मुताबिक, 'हमने गोवा में दो युद्धपोतों के निर्माण के लिए रूस के साथ 50 करोड़ डॉलर के समझौते को अंतिम रूप दिया है।' उन्होंने बताया कि युद्धपोतों का निर्माण 2020 में शुरू होगा और पहला जहाज 2026 में जलावतरण के लिए तैयार होगा, वहीं दूसरा 2027 तक तैयार होगा।
रक्षा सूत्रों के मुताबिक, ये दोनों युद्धपोत स्टील्थ टेक्नोलॉजी से लैस होंगे। बताया जा रहा है कि स्टील्थ एयरक्राफ्ट की तरह ये दोनों युद्धपोत सोनार और रेडार की पकड़ में नहीं आएंगे। स्टील्थ टेक्नोलॉजी के कारण ये जंगी जहाज दुश्मन के इलाके में अपने मिशन आसानी से पूरे कर सकेंगे।
दोनों जंगी जहाजों को आधुनिक मिसाइल समेत अन्य हथियारों से भी लैस किया जाएगा। इस डील में रूस जीएसएल को डिजाइन, टेक्नोलॉजी समेत अन्य सामग्री देगा।गौरतलब है कि अक्टूबर में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने शुक्रवार को दोनों देशों के आपसी संबंधों को एक नई ऊंचाई प्रदान की थी। अपनी वार्षिक बैठक में भारत और रूस ने अंतरिक्ष, परमाणु ऊर्जा के शांतिपूर्ण उपयोग, रेलवे सहित आठ अहम समझौतों पर हस्ताक्षर किए थे।
इसमें भारत की महत्वाकांक्षी मानवयुक्त अंतरिक्ष योजना 'गगनयान' भी शामिल है। आधिकारिक सूत्रों ने बताया कि हैदराबाद हाउस में करीब पांच अरब डॉलर की लागत वाली वायु सुरक्षा प्रणाली एस-400 डील पर भी दोनों देशों ने हस्ताक्षर किए थे।भारत-रूस 19वीं वार्षिक बैठक के बाद जारी संयुक्त बयान में पीएम मोदी ने रूस की तारीफ करते हुए कहा था कि इस देश ने भारत की हमेशा मदद की है। उन्होंने भारत रूस की मैत्री को अनूठा बताया।
रक्षा विशेषज्ञों का कहना है कि अमेरिका अपने व्यापक हितों को देखते हुए भारत पर प्रतिबंध लगाने जैसा कदम नहीं उठाएगा। अंतरराष्ट्रीय परिस्थितियां ऐसी हैं कि अमेरिका को भारत के सहयोग की जरूरत है। खासकर एशिया में चीन पर अंकुश रखने के लिए उसे भारत की जरूरत है। भारत उसके साथ अगर नहीं होगा तो उसे अकेले ही इस इलाके में चीन का सामना करना होगा।
Post A Comment:
0 comments so far,add yours