नई दिल्‍ली : भारत के भूस्थैतिक संचार उपग्रह जीसैट-7ए का प्रक्षेपण बुधवार शाम 4.10 बजे किया जाना है, जो भारतीय वायुसेना के लिए बेहद खास है। इसके जरिये वायुसेना को भूमि पर रडार स्‍टेशन, एयरबेस और एयरबॉर्न वार्निंग एंड कंट्रोल सिस्‍टम (AWACS) से इंटरलिंकिंग की सुविधा मिलेगी, जिससे उसकी नेटवर्क आधारित युद्ध संबंधी क्षमताओं में विस्‍तार होगा और ग्‍लोबल ऑपरेशंस में दक्षता बढ़ेगी।
'टाइम्‍स ऑफ इंडिया' की एक रिपोर्ट के अनुसार, जीसैट-7ए  से वायुसेना न सिर्फ अपने विभिन्‍न एयरबेस से जुड़ सकेगी, बल्कि इससे ड्रोन संबंधी ऑपरेशंस में भी मदद मिलेगी। यह उपग्रह ऐसे समय में प्रक्षेपित होने जा रहा है, जबकि भारत अमेरिकन आर्म्ड प्रीडेटर-बी या सी गार्जियन ड्रोन हासिल करने की प्रक्रिया में जुटा है। ये उपग्रह नियंत्रित अनमैन्‍ड एरियल व्‍हीकल (UAV) हैं, जो लंबी दूरी से भी दुश्‍मनों के ठिकानों को निशाना बना सकते हैं।
जीसैट-7ए को जीएसएलवी-एफ11 प्रक्षेपण यान से प्रक्षेपित किया जाना है, जिसके लिए 26 घंटे की उल्टी गिनती मंगलवार को ही शुरू हो गई। करीब 2,250 किलोग्राम वजनी इस उपग्रह का प्रक्षेपण चेन्‍नई से करीब 110 किलोमीटर दूर श्रीहरिकोटा के स्पेसपोर्ट के दूसरे लांच पैड से किया जाएगा। इसका निर्माण निर्माण भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) ने किया है और इसका जीवनकाल आठ साल का है।
इस पर करीब 500-800 करोड़ रुपये की लागत आई है। वायुसेना को अगले कुछ वर्षों में एक अन्‍य उपग्रह जीसैट-7सी भी मिलने की उम्‍मीद है, जिससे नेटवर्क आधारित इसके ऑपरेशंस की क्षमताओं में और विस्‍तार होगा।
जीसैट-7ए  से पहले इसरो ने 29 सितंबर, 2013 को जीसैट-7 भी लॉन्‍च किया, जो 'रुक्‍म‍िणी' के नाम से भी जाना जाता है। यह उपग्रह भारतीय नौसेना के लिए था। इससे नौसेना को हिंद महासागर क्षेत्र में समुद्री न‍िगरानी में काफी मदद मिली। करीब 2,000 समुद्री मील की दूरी तक नजर रखने में सक्षम इस उपग्रह ने भारतीय नौसेना के युद्धक जहाजों, पनडुब्बियों और विमानों को सटीक जानकारियां मुहैया कराईं। 
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