नई दिल्ली । सूचना एवं प्रसारण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर कहते हैं कि समीक्षा करके चरणबद्ध ढंग से ढील दी जा रही है। 17 के बाद भी हालात के मुताबिक फैसला किया जाएगा। बगैर लक्षण के भी वायरस की मौजूदगी मिलने से सामाजिक दूरी ही बचाव का एकमात्र उपाय है।

वन एवं पर्यावरण मंत्री के रूप में जावड़ेकर प्रदूषण घटने से खुश तो हैं, लेकिन आगाह करते हैं, हालात हमेशा ऐसे ही नहीं रहने वाले। महामारी से निपटने के लिए किए जा रहे उपायों पर बातचीत के मुख्य अंश...

लॉकडाउन बार-बार क्यों बढ़ाना पड़ रहा है? 
सारी दुनिया में ऐसा ही हो रहा है। यह एकदम अनअपेक्षित संकट है। अमेरिका व सिंगापुर में भी कई चरणों में लॉकडाउन रहा। कुछ राज्यों में लगा, कुछ में नहीं। पर भारत ने कोरोना को काबू करने में दूसरे देशों के मुकाबले काफी ज्यादा सफलता पाई है। हमारे विशेषज्ञ समूह समन्वय रख रोज समीक्षा करते हैं, फिर कदम उठाया जाता है। चरणबद्ध तरीके से लॉकडाउन लगा और इसी तरह उठा भी रहे हैं। आर्थिक गतिविधियां सुनिश्चित कर रहे हैं।

लोगों में कितनी सजगता आई?
लोग मास्क लगाने लगे हैं। मास्क नहीं है तो रुमाल बांध रहे हैं। सैनिटाइजर नहीं है तो साबुन से कई बार हाथ धो रहे हैं। 90 प्रतिशत लोगों ने लॉकडाउन का पूरा  पालन किया है। बस समस्या सोशल डिस्टेंसिंग को लेकर है। अगर लोग भीड़ वाली जगह पर एक दूसरे से 5-6 फुट की दूरी बनाए रखें तो कोरोना को आसानी से हराया जा सकता है।


कोरोना फैलने के लिए सबसे जिम्मेदार कौन है...सरकार, जनता या जमाती?
किसी एक वर्ग, जाति या मजहब के लोगों को दोष देना ठीक नहीं है। धार्मिक स्थल हो, बाजार हो या शराब की दुकान, सोशल डिस्टेंसिंग रखना सबसे ज्यादा जरूरी है। इस नए कांसेप्ट का प्रचार-प्रसार सबसे ज्यादा जरूरी है। रोग के लक्षण नजर नहीं आने से भी खतरा बढ़ा है। खांसी आती है न छींक या बुखार, फिर भी वायरस है। ऐसे में अनजाने में ही रोग फैल रहा है। इसलिए सामाजिक दूरी ही बचा सकती है।

लॉकडाउन के 44 दिन बाद क्या आकलन है? हम आर्थिक रूप से कहां खड़े हैं?
दुनिया के मुकाबले हम बेहतर स्थिति में हैं। अमेरिका में 70000 मौतें और 12 लाख से ज्यादा रोगी हैं। 25000 से ज्यादा मौतें ब्रिटेन, इटली, स्पेन और फ्रांस में हुईं। 10000 के करीब बेल्जियम, जर्मनी और ब्राजील में हुई हैं। इनके मुकाबले भारत में स्थिति किसी हद तक नियंत्रण में है।

पहले मास्क, पीपीई, टेस्टिंग किट की कमी थी। अब कोरोना से लड़ने की क्या पूरी तैयारी है?
प्रधानमंत्री दिसंबर से ही कोरोना से लड़ने की तैयारी कर रहे थे। हर कैबिनेट मीटिंग में कहते थे कि बहुत बड़ा संकट आने वाला है। इसीलिए आज देश में 800 कोविड-19 अस्पताल हैं। दो लाख से ज्यादा आइसोलेशन बेड हो गए, 15000 से ज्यादा आईसीयू बेड हो गए। आज केवल 80-90 लोग ऑक्सीजन पर हैं, महज साठ लोग वेंटिलेटर पर। शुरू में मास्क आयात किए, फिर खुद बनाने शुरू किए। आज हम अपनी जरूरत के मास्क खुद बना रहे हैं। शुरू में वेंटिलेटर आयात करने पड़े अब 36 हजार वेंटिलेटर बन रहे हैं। इसी तरह पीपीई किट में भी आत्मनिर्भर हो गए हैं।

पहले केस के बाद सभी हवाई यात्रियों को क्वारंटीन करते तो बेहतर नहीं होता?
 मैंने कहा ना कि हम बाकी दुनिया के मुकाबले बेहतर स्थिति में हैं। इसी में सभी कुछ समाहित है।

स्थिति काबू में है तो इसी वजह क्या मानते हैं?
सबसे बड़ी वजह लोगों का पीएम में विश्वास है। उन्हें लगता है, मोदीजी हमारे लिए काम कर रहे हैं, हमारी व हमारे परिवार की जिंदगी बचा रहे हैं। उन्हें भरोसा है, लॉकडाउन के बाद हमारी रोजी-रोटी की भी चिंता प्रधानमंत्री कर रहे हैं। धीरे-धीरे हालात सामान्य होने की ओर बढ़ रहे हैं।

जीडीपी को कितना नुकसान होगा?
 यह आकलन का नहीं, जान बचाने का समय है। हमें भरोसा है कि कोरोना के बाद भारत बहुत सशक्त बनकर उभरेगा।

असंगठित क्षेत्र के हालात बहुत खराब है। सरकार क्या करेगी?
प्रधानमंत्रीजी ने अपील की थी कि अप्रैल की तनख्वाह सभी कर्मचारियों को दी जाए। केंद्र व राज्य सरकारों और सार्वजनिक क्षेत्र के संस्थानों ने तो दिया ही है, अधिकतर निजी संस्थानों ने भी अपील का आदर किया। बहुत कम लोग होंगे, जिन्हें अप्रैल में तनख्वाह नहीं मिली। इसीलिए मई में हमने आर्थिक गतिविधियां शुरू की हैं।

आर्थिक पैकेज कब तक घोषित होगा?
प्रधानमंत्री लगातार संवाद कर रहे हैं। यह सरकार जनता की समस्याओं के प्रति सबसे ज्यादा संवेदनशील है। लोगों को भरोसा है कि जिन्हें, जो भी जरूरत है, वैसा ही फैसला प्रधानमंत्री लेंगे।

पश्चिम बंगाल सरकार ने केंद्र से टकराव का रवैया अपनाया है। केंद्र राज्य सरकार के काम में क्या दखलअंदाजी कर रहा है?
केंद्र की टीमें मुंबई, कोलकाता और अहमदाबाद तीनों जगह गईं। विरोध केवल पश्चिम बंगाल सरकार से आ रहा है। टीम समाधान ढूंढने में राज्यों की मदद कर रही है। दिल्ली में आम आदमी पार्टी की सरकार लगातार केंद्र से परामर्श कर काम कर रही है। इसमें किसी को राजनीति नहीं करनी चाहिए। लेकिन ममता दीदी के यहां अगले एक वर्ष के अंदर चुनाव होने हैं। उसमें उन्हें हार का डर सता रहा है। इसीलिए वे हर बात में राजनीति करने की कोशिश कर रही हैं।


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