नई दिल्ली। कोरोना वायरस का संक्रमण रोकने के लिए इस वक्त देश बेशक लॉकडाउन-4 से गुजर रहा है और इसकी वैक्सीन बनाने की कोशिशें तेज हैं, लेकिन पर्यावरणविदों और वन्य जीव विशेषज्ञों का मानना है कि कोविड-19 व इसी तरह के दूसरे वायरस से पैदा होने वाली महामारियों के स्थायी इलाज का राज स्वस्थ व मजबूत इको सिस्टम में छिपा है।

विशेषज्ञों के मुताबिक, जंगली जानवरों पर पलने-बढ़ने वाले वायरस महामारी फैलाते हैं। कोविड-19 व इसी तरह के दूसरे वायरस से होने वाले ज्यादातर रोग जंगली जीव-जंतुओं से इंसानों में पहुंचते हैं। इसकी बड़ी वजह क्रियाशील व जटिल इको सिस्टम का खत्म होते जाना है। इससे वायरस जंगल से इंसानी बस्तियों की तरफ की रुख कर लेता है। नतीजतन, यह कोरोना वायरस और इसी तरह की दूसरी महामारियों को जन्म देता है।

सक्रिय और जटिल इको सिस्टम इस तरह सुरक्षा कवच का करता है काम
सामान्य अवस्था में घातक वायरस जंगली जानवरों को अपना होस्ट (पोषिता) बनाते हैं। तमाम प्रजातियों के पेड़-पौधों से भरा इको सिस्टम वायरस की नुकसानदेह मारक क्षमता को कमजोर कर देता है। वह जंगल में ही पैदा होकर वहीं खत्म हो जाता है। इससे वायरस के इंसानों तक पहुंचने की गुंजाइश नहीं बचती।

शहरी इको सिस्टम खुद ही होता है कमजोर
शहरी क्षेत्रों का इको सिस्टम न तो ज्यादा सक्रिय होता है और न ही जटिल। यह बेहद सामान्य होता है। इससे वायरस के कमजोर पड़ने की संभावना सीमित हो जाती है। जंगली जीव-जंतुओं से यह मवेशियों के जरिए इंसानों में प्रवेश कर जाता है। कोरोना वायरस भी चमगादड़ से पैंगोलीन व पैंगोलीन से इंसानों में आया है। यूएनईपी का प्रोटोकाल कहता है कि इंसानों की 60 फीसदी बीमारियां जूनोटिक्स (जंगली जानवरों से इंसानों में) होती हैं।



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