नई दिल्ली I मशहूर व्यंग्यकार शरद जोशी ने कांग्रेस के बारे में लिखा था, ‘इतिहास साक्षी है कांग्रेस ने हमेशा संतुलन की नीति को बनाए रखा. जो कहा वो किया नहीं, जो किया वो बताया नहीं. हिंदी की हिमायती रही, अंग्रेजी को चालू रखा. समाजवाद की समर्थक रही, पर पूंजीवाद को शिकायत का मौका नहीं दिया...’ राजनीति में हिंदू-मुस्लिम दोनों को साधे रखने के लिए इन दिनों भी वह संतुलन की इसी नीति पर चलती नजर आ रही है.
शशि थरूर के 'हिन्दू पाकिस्तान' वाले बयान से कांग्रेस पर सवाल उठ रहे हैं. पूछा जा रहा है कि क्या थरूर के बयान पर कार्रवाई नहीं करने के पीछे मुस्लिमों को वोट के लिए खुश करने की कोई रणनीति है? उधर, थरूर अपने बयान से मुकरे नहीं हैं. उनके मुताबिक उन्होंने बीजेपी और आरएसएस के बारे में जो कहा था, उस पर कायम हैं. वो कह रहे हैं कि ‘मैंने पहले भी कहा है और फिर कहूंगा. पाकिस्तान की स्थापना धर्म के वर्चस्व वाले देश के तौर पर हुई जो अल्पसंख्यकों के साथ भेदभाव करता है और उनको समान अवसरों से उपेक्षित रखता है.’
हालांकि, कांग्रेस ने शशि थरूर के ‘हिंदू पाकिस्तान’ वाले बयान को खारिज करते हुए कहा कि भारत का लोकतंत्र और इसके मूल्य इतने मजबूत हैं कि भारत कभी पाकिस्तान बनने की स्थिति में नहीं जा सकता. लेकिन पार्टी थरूर पर कार्रवाई से बचती नजर आ रही है. थरूर ऑल इंडिया प्रोफेशनल कांग्रेस के अध्यक्ष हैं.


बुधवार को राहुल गांधी के मुस्लिम बुद्धिजीवियों से मुलाकात के दौरान मुसलमानों से दूर होने की गलती मानना और उसके बाद थरूर का बयान क्या सिर्फ संयोग है? या फिर मंदिर-मठों में घूमने, खुद को शिवभक्त और जनेऊधारी ब्राह्मण कहने के बाद कांग्रेस इस बहाने 2019 में मोदी को चुनौती देने के लिए सॉफ्ट हिंदुत्व और सेकुलरिज्म का कॉकटेल बना रही है?  सियासी जानकारों का कहना है कि ये पार्टी की 2019 लोकसभा चुनाव से पहले मुस्लिम समाज को संदेश देने की कोशिश भी हो सकती है.


राहुल गांधी गुजरात और कर्नाटक चुनाव में मंदिरों और मठों में भटके हैं. खुद को कभी शिवभक्त और कभी जनेऊधारी ब्राह्मण बताया है. इससे कांग्रेस पर सॉफ्ट हिंदुत्व की तरफ झुकने की इमेज बन रही है. ऐसे में पार्टी यह बताना चाहती है कि मुस्लिम उसके एजेंडे में हैं और वो किसी भी धर्म विशेष की तरफ झुकी नहीं है.
फिलहाल तो बीजेपी को बैठे बिठाए कांग्रेस को राष्ट्रवाद के मसले पर घेरने का एक मौका मिल गया है. इस प्रकरण से बीजेपी को कितना फायदा होगा और कांग्रेस को नुकसान?  अगर कांग्रेस को डैमेज होता है तो इसके लिए बड़ा जिम्मेदार राहुल गांधी को माना जाएगा या फिर थरूर को?

राजनीतिक विश्लेषक आलोक भदौरिया का मानना है “कांग्रेस कभी सॉफ्ट हिंदुत्व की तरफ जाती है और कभी सेक्युलर बनने की कोशिश करती है. यह रणनीति नहीं बल्कि उसका भ्रम और कन्फ्यूजन है. इससे मतदाता भ्रमित होगा और नुकसान कांग्रेस को होगा. उसे एक स्टैंड पर कायम रहना होगा. मणिशंकर अय्यर का गुजरात चुनाव के दौरान प्रधानमंत्री मोदी पर की गई टिप्पणी और अब थरूर के बयान को मैं कांग्रेस का सेल्फ गोल कहूंगा. यह बयान ऐसे समय आया है जब मोदी और अमित शाह दोनों लोकसभा चुनाव के लिए मैदान में आ चुके हैं. वो इसे भुनाने से परहेज नहीं करेंगे.”

दिल्ली यूनिवर्सिटी में राजनीति विज्ञान के एसोसिएट प्रोफेसर सुबोध कुमार का मानना है "राहुल गांधी जो सॉफ्ट हिंदुत्व और सेकुलरिज्म का घालमेल करने की कोशिश कर रहे हैं उस नीति पर कांग्रेस पहले ही चल चुकी है. लेकिन मंडल-कमंडल की राजनीति शुरू होने के बाद कांग्रेस का खेल खराब हो गया. 'मंडल' चला गया क्षेत्रीय पार्टियों में और 'कमंडल' चला गया बीजेपी में."


कुमार के मुताबिक "हिंदुत्व का वोटबैंक बीजेपी के साथ है. मुस्लिम और दलित भी किसी न किसी अंब्रेला के नीचे हैं. अभी बीजेपी ने कोई ऐसी गलती नहीं की है कि ब्राह्मणों का झुकाव कांग्रेस की तरफ हो जाए और सपा-बसपा जैसी पार्टियों ने कोई गलती नहीं की है कि दलित और मुस्लिम कांग्रेस की तरफ आ जाएं. ऐसे में मुझे नहीं लगता कि अब कांग्रेस की संतुलन बनाने वाली कोई कोशिश सफल होगी."


बयानों में उलझती कांग्रेस

-साल 2007 की बात है. गुजरात के नवसारी में कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने मोदी के लिए 'मौत का सौदागर' शब्द का इस्तेमाल किया था. इसके बाद से कांग्रेस वहां उबर नहीं पाई है. इससे कांग्रेसियों ने कोई सबक नहीं लिया.


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