नई दिल्ली: हिंदी हार्टलैंड के तीन राज्यों छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश और राजस्थान के नतीजे बीजेपी के लिए निराशाजनक रहे। तीनों राज्यों को बीजेपी बचाने में नाकाम रही। इन राज्यों में बीजेपी की हार क्यों हुई उस विषय पर पार्टी की तरफ से आधिकारिक बयान ये आया कि सत्ता विरोधी लहर को थामने में पार्टी नाकाम रही। लेकिन जानकार बताते हैं कि इन तीनों राज्यों में अलग अलग मुद्दों के साथ किसानों के कल्याण और कर्जमाफी का मुद्दा छाया रहा। किसी न किसी रूप में कांग्रेस का कर्जमाफी का स्लोगन काम कर गया। अब ऐसे में केंद्र सरकार को लगता है कि किसानों और कर्जमाफी के मुद्दे को हल्के में नहीं लिया जा सकता है।
नरेंद्र मोदी सरकार आम चुनाव से पहले किसानों के संबंध कुछ अहम फैसले कर सकती है। बताया जा रहा है कि केंद्र सरकार ओडिशा सरकार के मॉडल से प्रभावित है और उसमें कुछ फेरबदल के जरिए नई योजनाओं को शुरू किया जा सकता है। इस सिलसिले में वित्त मंत्रालय, कृषि मंत्रालय और पीएमओ के बीच गंभीर मंथन जारी है।


केंद्र सरकार एक हाउसहोल्ड, वन इंसेंटिव के तहत प्रत्येक परिवार को बीज, खाद और तकनीकी साधन के लिए 10 हजार रुपये वार्षिक उपलब्ध करा सकती है। इस योजना के तहत भूमिहीन किसानों को नहीं शामिल किया जा सकता है क्योंकि वो उधारी की मार से ग्रसित नहीं हैं। अगर सरकार इस योजना को लागू करती है तो सरकारी खजाने पर करीब 1.4 लाख करोड़ को बोझ आएगा।

बताया ये भी जा रहा है कि गणतंत्र दिवस के मौके पर पीएम मोदी इस संबंध में बड़ा ऐलान कर सकते हैं। पीएमओ, इस योजना को नए कलेवर में लोगों के बीच ला सकता है या अलग अलग राज्यों में अपनाई जाने वाली स्कीम के बेहतर हिस्सों को एक जगह समेट कर नई योजना की शुरुआत की जा सकती है।
इसके अलावा पीएमओ, तेलंगाना मॉडल पर भी करीब से नजर रख रहा है। तेलंगाना मॉडल में छोटे और सीमांत किसानों को खरीफ और रबि फसल के लिए प्रति एकड़ 4 हजार रुपए की राशि दी जाती है। लेकिन जमीन के असली मालिकाना हक का मामला भारत में जटिल है क्योंकि यहां जमीन छोटे छोटे टुकड़ों में बंटे हुए हैं। इसके साथ इस स्कीम को लागू करने पर सरकारी खजाने पर दो लाख करोड़ रुपए का बोझ आएगा।
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