नई दिल्ली देश की सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस, कभी देश की सियासत का सिरमौर रही कांग्रेस, जिस कांग्रेस की तूती कभी पूरब से पश्चिम और उत्तर से दक्षिण हर दिशा में बोलती थी. वही कांग्रेस आज अपने अस्तित्व की जंग लड़ रही है. लोकसभा चुनाव के परिणामों की घोषणा के बाद करारी हार से निराश कांग्रेस के अध्यक्ष राहुल गांधी ने पद से इस्तीफा दे दिया, तो पार्टी के नेता नया अध्यक्ष चुनने की बजाय उनकी मान-मनौव्वल में जुट गए.

एक महीने से अधिक समय तक चले मान-मनुहार के दौर के बाद आखिरकार राहुल माने भी नहीं और अब बिन कैप्टन के जहाज बन गई पार्टी को कर्नाटक, गोवा जैसी चुनौतियों से जूझना पड़ रहा है. कांग्रेस नए अध्यक्ष के चुनाव के प्रति गंभीर भी नहीं. अब तक पार्टी का नया मुखिया चुनने के लिए या इस संबंध में चर्चा के लिए कार्यकारिणी की बैठक तक नहीं हुई.

अध्यक्ष पद से राहुल के जाने के बाद नेतृत्व के संकट से जूझ रही कांग्रेस को लेकर अब यह कहा जाने लगा है कि यह संकट जल्द नहीं सुलझा तो पार्टी खत्म हो जाएगी.यह चर्चा आधारहीन भी नहीं. राहुल गांधी के अध्यक्ष पद छोड़ने से लेकर अभी तक के घटनाक्रम और कांग्रेस नेताओं के बयान इसी तरफ इशारा कर रहे हैं कि पार्टी आजाद भारत में अपने सबसे बुरे दौर गुजर रही है. गुलाम नबी आजाद ने तो यहां तक कह दिया कि ऐसा लग रहा है मानो कांग्रेस को खत्म करने के लिए ही भाजपा सत्ता में आई है.

जब पूरी पार्टी का ध्यान राहुल को मनाने पर रहा, पार्टी पदाधिकारियों में एक के बाद एक पद छोड़ने की होड़ लग गई. तो इन सबके बीच अध्यक्ष के बिन अनाथ कांग्रेस में अब जैसे टूट का सिलसिला भी शुरू हो गया.

कर्नाटक में संकट, गोवा में विधायकों ने बदला पाला

कर्नाटक में कांग्रेस के 13 विधायकों ने विधानसभा की सदस्यता से इस्तीफा दे दिया, जिससे जेडीएस के साथ पार्टी की गठबंधन सरकार खतरे में आ गई है. कर्नाटक का सियासी नाटक अभी चल ही रहा था कि गोवा में भी कांग्रेस के 15 में से 10 विधायकों ने पाला बदल लिया और हाथ का साथ छोड़कर कमल का दामन थाम लिया.

सिंधिया ने की जल्द अध्यक्ष चुनने की मांग, जनार्दन द्विवेदी ने जताई नाराजगी

कांग्रेस शासित मध्य प्रदेश में पार्टी नेताओं की गुटबाजी जगजाहिर है. कमलनाथ पर पार्टी के खराब प्रदर्शन के कारण पद से इस्तीफा देने का दबाव बढ़ता जा रहा है, वहीं ज्योतिरादित्य सिंधिया के समर्थक दबी जुबान उन्हें मुख्यमंत्री बनाने की मांग करने लगे हैं. इससे प्रदेश में फिर से गुटबाजी को हवा मिलने के कयास लगाए जाने लगे हैं. गुरुवार को सिंधिया समर्थक मंत्री तुलसी सिलावट के बंगले पर भोज हुआ, जिसमें कमलनाथ और स्वयं सिंधिया के साथ ही कांग्रेस के साथ ही सरकार को समर्थन दे रहे सभी निर्दलीय, समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी के विधायक पहुंचे.

इसे गोवा और कर्नाटक के घटनाक्रम से सतर्क कांग्रेस का कदम माना जा रहा, लेकिन राजनीतिक गलियारों में सिंधिया समर्थक मंत्री के बंगले पर भोज को सिंधिया द्वारा अपनी ताकत प्रदर्शित करना भी माना जा रहा है. सिंधिया ने पत्रकारों से बात करते हुए स्वीकार किया कि यह समय कांग्रेस के लिए गंभीर है और लगे हाथ जल्द निर्णय की मांग भी कर डाली. दूसरी तरफ वरिष्ठ नेता जनार्दन द्विवेदी ने भी अब तक कार्यकारिणी की बैठक न होने पर नाराजगी जाहिर की है.

राजस्थान में अशोक गहलोत और सचिन पायलट आमने-सामने

राजस्थान में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और सचिन पायलट का द्वंद खुलकर सामने आ गया है. मुख्यमंत्री गहलोत ने बजट के बाद पायलट को संदेश दे दिया कि जनता ने उन्हें मुख्यमंत्री बनाने के लिए वोट दिया था. मुख्यमंत्री बनने के लिए अपना नाम आगे कर रहे लोग गलतफहमी न पालें, तो पायलट ने पलटवार कर दिया कि जनता ने राहुल गांधी के नाम पर वोट दिया. किसी और के नाम पर नहीं.

बिन माझी के मझधार में पड़ी कांग्रेस को इन परिस्थितियों से निकालने के लिए सियासी नाव का एक कुशल खेवैया चाहिए. पार्टी को इसकी जल्द ही तलाश करनी होगी. अन्यथा पार्टी को और मुश्किल हालात का सामना करना पड़ सकता है.
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