नई दिल्ली। लोकसभा में सूचना का अधिकार (संशोधन) विधेयक, 2019 पारित होने के बाद सरकार इसे राज्यसभा में पास कराने की जुगत में है. इसके लिए सरकार संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (UPA) अध्यक्ष सोनिया गांधी से मुलाकात कर सकती है. हालांकि राज्यसभा में विपक्ष ने इसे रोकने की रणनीति बनाई है और अधिकतर दल इस संशोधन बिल के खिलाफ हैं. विपक्षी दलों की मांग है कि इस बिल को सेलेक्ट कमेटी के पास भेजा जाए.


अंग्रेजी समाचार वेबसाइट इंडिया टुडे की एक रिपोर्ट के अनुसार सूत्रों ने जानकारी दी है कि सरकार, इस विधेयक के लिए पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी से मुलाकात कर सकती है. राज्यसभा में इस विधेयक के खिलाफ इकट्ठा हुए 14 दलों के पास 111 सदस्य हैं, जबकि बहुमत का आंकड़ा 123 सदस्यों का है.


फिलहाल भारतीय जनता पार्टी के पास राज्यसभा में बहुमत नहीं है. ऐसे में अगर विपक्ष ने और सांसदों को अपनी ओर किया तो यह विधेयक पास कराना सरकार के लिए आसान नहीं होगा. लोकसभा में इस विधेयक के पक्ष में 218 सांसदों ने वोट किया और विरोध में 79 ने. राज्यसभा में विधेयक पारित होने के बाद यह कानून बन जाएगा.


इस संशोधन में सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005 में संशोधन करने का प्रस्‍ताव किया गया है, ताकि मुख्‍य सूचना आयुक्‍त और सूचना आयुक्‍तों तथा राज्‍य मुख्‍य सूचना आयुक्‍त और राज्‍य सूचना आयुक्‍तों का कार्यकाल, वेतन, भत्‍ते और सेवा की अन्‍य शर्तें वही होंगी, जैसा केन्‍द्र सरकार द्वारा निर्धारित किया जाए.



क्या कहा सरकार ने- 


इस विधेयक में संशोधन पर आपत्ति और शंका जाहिर करते हुए विपक्ष के विरोध के बीच लोकसभा में हुई बहस में भाग लेते हुए केन्‍द्रीय कार्मिक, लोक शिकायत और पेंशन राज्‍य मंत्री डॉ. जितेन्‍द्र सिंह ने कहा था कि यह सरकार पारदर्शिता और जवाबदेही के लिए पूरी तरह प्रतिबद्ध है. इस सिद्धांत का अनुपालन करते हुए सरकार ने आरटीआई की संख्‍या कम करने के लिए सरकारी विभागों को अधिकतम जानकारी देने के विस्‍तार को सरकार ने स्‍वत: प्रोत्‍साहित किया है.


सूचना आयोगों और निर्वाचन आयोगों की सेवा शर्तों की तुलना करने के मुद्दे का जवाब देते हुए डॉ. जितेन्‍द्र सिंह ने कहा कि केन्‍द्रीय सूचना आयोग को राज्‍य सूचना आयोग सूचना का अधिकार अधिनियम 2005 के प्रावधानों के तहत स्‍थापित वैधानिक निकाय हैं. इसलिए भारत के निर्वाचन आयोग तथा केन्‍द्र और राज्‍य सूचना आयोग के अधिदेश अलग-अलग हैं.


सिंह ने कहा-  इसी के अनुसार इनकी स्थिति और सेवा शर्तों को तर्कसंगत बनाने की जरूरत है. इसलिए सूचना आयुक्‍तों की नियुक्ति संबंधी मूल अधिनियम में कोई परिवर्तन नहीं किया गया है. इसलिए सूचना आयुक्‍तों की स्‍वायत्‍ता कम करने का प्रश्‍न ही पैदा नहीं होता है.


सोनिया ने किया विरोध


वहीं लोकसभा में सूचना का अधिकार कानून संशोधन विधेयक पारित होने के बाद में सोनिया गांधी ने मंगलवार को आरोप लगाया था कि सरकार इस संशोधन के माध्यम से आरटीआई कानून को खत्म करना चाहती है जिससे देश का हर नागरिक कमजोर होगा.


सोनिया ने एक बयान में कहा था, 'यह बहुत चिंता का विषय है कि केंद्र सरकार ऐतिहासिक सूचना का अधिकार कानून-2005 को पूरी तरह से खत्म करने पर उतारु है.' उन्होंने कहा था, 'इस कानून को व्यापक विचार-विमर्श के बाद बनाया है और संसद ने इसे सर्वसम्मति से पारित किया. अब यह खत्म होने की कगार पर पहुंच गया है.'


यह है सोनिया का दावा- 


संप्रग प्रमुख ने कहा था, 'पिछले कई वर्ष में हमारे देश के 60 लाख से अधिक नागरिकों ने आरटीआई के उपयोग किया और प्रशासन में सभी स्तरों पर पारदर्शिता एवं जवाबदेही लाने में मदद की. इसका नतीजा यह हुआ कि हमारे लोकतंत्र की बुनियाद मजबूत हुई.' उन्होंने कहा था , 'आरटीआई का सक्रिय रूप से इस्तेमाल किये जाने से हमारे समाज के कमजोर तबकों को बहुत फायदा हुआ है.'


सोनिया ने दावा किया था, 'यह स्पष्ट है कि मौजूदा सरकार आटीआई को बकवास मानती है और उस केन्द्रीय सूचना आयोग के दर्जे एवं स्वतंत्रता को खत्म करना चाहती है जिसे केंद्रीय निर्वाचन आयोग एवं केंद्रीय सतर्कता आयोग के बराबर रखा गया था.' उन्होंने कहा था, "केंद्र सरकार अपने मकसद को हासिल करने के लिए भले ही विधायी बहुमत का इस्तेमाल कर ले, लेकिन इस प्रक्रिया में देश के हर नागरिक को कमजोर करेगी.'
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