नई दिल्ली: भारतीय क्रिकेट टीम को दो बार विश्व चैंपियन बनाने में अहम भूमिका निभाने वाले धाकड़ बल्लेबाज युवराज सिंह ने आखिरकार अपनी चुप्पी तोड़ दी है। युवराज ने गुरुवार को एक टीवी चैनल को दिए इंटरव्यू में टीम इंडिया से जुड़े कई बड़े खुलासे किए हैं। उन्होंने खुद को साइडलाइन किए जाने के बारे में भी बड़े राज साझा किए हैं। जानिए युवराज ने क्या कहा... 

संन्यास ऑउट ऑफ च्वाइस था

अपने संन्यास के बारे में बात करते हुए युवराज ने कहा, वह ऑउट ऑफ च्वाइस था। विश्व कप के लिए टीम चुन ली गई थी। ऐसे में मैं देश के बाहर जाकर क्रिकेट खेलना चाहता था।  संन्यास कब लेना है ये निर्णय करना तनावपूर्ण हो गया था कि। लाइफ आगे नहीं जा रही थी। दो तीन साल पहले शादी हुई थी मैं अपने निजी जीवन के लिए वक्त निकालना चाहता था। करियर का आखिरी दौर मेरे लिए बोझ सा बन गया था, मैं यही सोच रहा था कि इससे बाहर कैसे निकलना है। इसलिए मैंने सोचा कि यदि मुझे संन्यास के बाद बाहर जाकर लीग खेलना है तो मुझे लगा कि ये सही समय हैं। कनाडा लीग के लिए सही टाइम था। इससे पहले आईपीएल मैंने आधा खेला आधा नहीं खेला। मुझे लगा कि चीजें अब सही दिशा में नहीं जा रही हैं ऐसे में ये सही समय है जब युवा खिलाड़ी टीम को आगे लेकर जाएं और मैं संन्यास का ऐलान कर दूं। 

खेलना चाहता था विश्व कप 2019 
युवराज सिंह ने कहा कि चैंपियंस ट्रॉफी 2017 में 300वां मैच खेलने के बाद मैंच चाहता था कि अगला विश्व कर खेलूं। 2015 का विश्व कप मैंने मिस किया था। मुझे अच्छा नहीं लगा। उस समय मैं रणजी ट्रॉफी में रन भी बना रहा था। उस समय माहौल थोड़ा अलग था उस टाइम। ऐसे में मेरे जेहन में था कि अगर में 2019 के विश्व कप की टीम में जगह बना सका तो बड़ा अचीवमेंट होगा। 
लेकिन इसके बाद बहुत सारे फैक्टर जिनके बारे में बात करनी है या नहीं तो उसके बीच में 2019 का विश्व कप आया कि मैं 37 साल का हो गया था। बहुत सारी चीजें मेरे फेवर में नहीं गईं। सपोर्ट नहीं था तब मैंने सोचा कि मैं खुशनसीब हूं कि मैं इतनी क्रिकेट खेल सका उस बारे में सोचूं न कि इस बारे में कि मुझे एक वर्ल्ड कप और खेलना है। तीन 50 ओवर के वर्ल्ड कप खेलने के बाद मैं बीमार पड़ गया। इसके बाद मैंने कई टी-20 विश्व कप खेले। मैंने कुल मिलाकर करियर में 8-9 विश्व कप में शिरकत की। मुझे उसके लिए शुक्रगुजार होना चाहिए न कि ये सोचना चाहिए कि एक वर्ल्ड कप और खेलूंगा, नहीं खेलूंगा तो क्या? इस तरह की बातें मेरे दिमाग में चल रही थीं। मुझे खुशी है कि मैंने सही समय पर संन्यास लिया। 
सोचा नहीं था कमबैक के बाद किया जाएगा बाहर 


नहीं मैंने बिलकुल नहीं सोचा था कि मुझे टीम से बाहर कर दिया जाएगा। मुझे याद है कि मैंने उस दौरान 8-9 मैच खेले थे उसमें से 2 में मैन ऑफ द मैच चुना गया था। मेरा स्ट्राइक रेट 98 का था और मैं 42 की औसत से रन बना रहा था। मैं मिडिल ऑर्डर में अच्छा कर रहा था लेकिन मुझे चोट से उबरने के बाद कहा गया कि लास्ट का टी-20 मैच मत खेलो और श्रीलंका दौरे की तैयारी करो। ऐसे में बीच में यो-यो टेस्ट आ गया। जो टेस्ट में पास होगा उसे टीम में जगह मिलेगी। ये यू टर्न मेरे चयन में लिया गया। 
यो-यो टेस्ट पास करने पर भी नहीं मिली एंट्री
इसके बाद मुझे वापस जाना पड़ा और 36 साल की उम्र में यो-यो टेस्ट पास करने के लिए तैयारी करनी पड़ी। लेकिन टेस्ट पास करने के बाद भी मुझे टीम में शामिल नहीं किया गया और कहा गया कि जाइए घरेलू क्रिकेट खेलिए। उन्होंने सोचा था कि इससे यो-यो टेस्ट क्लियर नहीं होगा क्योंकि इसकी उम्र में मुश्किल होगा। उसके बाद टीम मैनेजमेंट ने बहाने बनाए। उनके पास मेरे लिए कोई जवाब नहीं था। 
टीम से बाहर करने से पहले किसी ने बात नहीं की 
ये बेहद दुर्भाग्यपूर्ण था कि जो खिलाड़ी 15-17 साल अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट खेला है। आपको उसे बैठकर बताना चाहिए मुझे किसी ने नहीं बताया। वीरेंद्र सहवाह को नहीं बताया, जहीर खान को नहीं बताया। उनके हिसाब से तो मैं बहुत कम क्रिकेट खेला हूं। कोई भी प्लेयर हो इंचार्ज को उसके साथ बैठकर बात करनी चाहिए कि ये मामला है हम युवा खिलाड़ियों को मौका देना चाहते हैं। हमने ये निर्णय लिया है। शुरुआत में ये बात खराब लगती है लेकिन कम से कम उन्हें क्रेडिट देना चाहिए कि उन्होंने सच आपके सामने कहा। जो कि भारतीय क्रिकेट में होता नहीं है। हमेशा से भारतीय क्रिकेट में खिलाड़ियों के साथ ऐसा होता रहा है। मैंने बड़े बड़े खिलाड़ियों के साथ ऐसा होता देखा है।  तब मैंने उसे व्यक्तिगत तौर पर नहीं लिया लेकिन अब ले रहा हूं। अब समय आगे बढ़ने का है और मैंने शांति से खुद को अलग कर लिया। 
2007 और 2011 में इसलिए बने विश्व चैंपियन 
युवराज ने इस बारे में बात करते हुए कहा, 2007 की टीम नई थी कप्तान नया था। सारे सीनियर खिलाड़ियों को आराम दे दिया गया था। हम ऐसे माहौल में बेधड़क खेले जहां सीनियर्स का दबाव नहीं था। लालचंद राजपूत हमारे नए कोच थे हमने मैदान में जाकर अपनी क्रिकेट को एक्सप्रेस किया कि हम डरकर नहीं खेलेंगे। इस सोच ने हमारी मदद की। हम वो विश्व कप जीते एमएस को बतौर कप्तान ये सफलता मिली। 
उसके बाद टीम में बहुत से बदलाव हुए। उस टीम के आधे खिलाड़ी 2011 में पहुंचे। हमारे पास गैरी कर्स्टन के रूप में एक शानदार कोच थे जिनके साथ हमने चार साल शानदार क्रिकेट खेली। हमारे जो सर्वश्रेष्ठ खिलाड़ी थे वो अपने सबसे बेहतरीन दौर में थे। हमारी टीम में कई मैच विनर खिलाड़ी थे। सब एक दूसरे का सम्मान करते थे। अगर एक खिलाड़ी अच्छा नहीं करेगा तो हमारा मिडिल ऑर्डर स्ट्रॉग है हमारी ओपनिंग स्ट्रॉग है। हमारी गेंदबाजी अनुभवी और मजबूत है। हमारी टीम कंप्लीट थी और हमारा कम्युनिकेशन अच्छा था। खासकर विश्व कप के दौरान धोनी, गैरी और सचिन सहित टीम के सभी सीनियर खिलाड़ियों के बीच अच्छा कम्यूनिकेशन था कि हम टूर्नामेंट को कैसे अप्रोच करें। लोगों के अंदर जीतने की इच्छाशक्ति थी। ऐसे में विश्व कप जीतना नियती था। 
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