नई दिल्ली I जीएसटी की लॉन्चिंग के दो साल बाद केंद्र सरकार ने इसकी सबसे बड़ी समीक्षा शुरू कर दी है। इसके तहत गुड्स ऐंड सर्विसेज टैक्स की स्लैब और दरें एक बार फिर से तय की जा सकती हैं। लीकेज को रोकने और कलेक्शन में इजाफे की कोशिशों के तहत सरकार ने अब रिव्यू शुरू किया है। एक देश, एक टैक्स की इस व्यवस्था की समीक्षा का काम केंद्र और राज्य सरकारों के 12 अधिकारियों की एक कमिटी को सौंपा गया है। शुक्रवार को पीएमओ की ओर से राज्य के सचिवों पर जीएसटी को लेकर बातचीत प्रस्तावित है। उससे ठीक पहले इस पैनल के गठन का फैसला लिया गया है। मीटिंग में राज्यों से जीएसटी के कलेक्शन को बढ़ाने को कहा जा सकता है।

माना जा रहा है कि पैनल इस बात पर विचार करेगा कि आखिर किस तरह से जीएसटी के मिसयूज को रोका जा सके। इसके अलावा ऐसे नियम बनें कि लोग स्वेच्छा से ही जीएसटी के दायरे में जुड़ना चाहें। रेस्तरां जैसे सेक्टर्स के जीएसटी से बचने और अन्य लीकेज को रोकने पर भी पैनल विचार करेगा। जीएसटी रिव्यू कमिटी की ओर से राज्यों सरकारों से कुछ प्रॉडक्ट्स को जीएसटी स्लैब में लाने पर विचार करने को कहा जा सकता है।

5 पर्सेंट से भी कम रही है जीएसटी की ग्रोथ

जीएसटी कलेक्शन में बीते कुछ महीनों में कमजोरी देखने को मिली है। इस फाइनैंशल इयर की पहली छमाही में जीएसटी कलेक्शन की ग्रोथ 5 फीसदी से कम रही है, जबकि लक्ष्य 13 फीसदी से ज्यादा इजाफे का था। हालांकि माना यह भी जा रहा है कि स्लोडाउन के चलते भी जीएसटी में कमी देखने को मिली है। खासतौर पर ऑटो सेल्स में कमी और बाढ़ के चलते भी यह स्थिति पैदा हुई है।

राज्य बोले, जीएसटी के डिजाइन में ही है कमी

इसके अलावा अधिकारियों को राज्यों में जीएसटी के सही ढंग से लागू होने की भी चिंता है। बता दें कि सालाना 14 पर्सेंट से कम इजाफे की स्थिति में केंद्र सरकार ने राज्यों को भरपाई की बात कही है। गौरतलब है कि बीते कुछ सप्ताह में विपक्षी दलों द्वारा शासित राज्यों ने जीएसटी में कलेक्शन के लिए केंद्र पर ही हमला बोला है। विपक्षी सरकारों का कहना है कि कलेक्शन में कमी की वजह इसकी डिजाइनिंग में कमी है। इसके अलावा कई राज्यों ने टैक्स में कटौती को भी कलेक्शन में कमी की वजह बताया है।
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