एक तरफ जहां सुप्रीम कोर्ट में निकाह हलाला के खिलाफ आई याचिकाओं पर सुनवाई की तैयारी चल रही है वहीं दूसरी तरफ ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड (AIMPLB) ने इसके पक्ष में दलील दी है कि यह कुरान की प्रैक्टिस है और इसे चुनौती नहीं दी जा सकती है. बोर्ड ने रविवार को राजधानी दिल्ली में रिव्यू मीटिंग रखी थी जिसमें सभी 40 सदस्यों के बीच मुस्लिमों से जुड़े मुद्दों पर चर्चा हुई. (पढ़ेंः हिंदुस्तान को क्यों जरूरत है शरियत कोर्ट की?)

AIMPLB के सेक्रेटरी और लीगल काउंसल जफरयाब जिलानी ने मीटिंग के बाद न्यूज18 से कहा कि निकाह हलाला को चुनौती नहीं दी जा सकती है. उन्होंने कहा, “निकाह हलाला एक प्रथा है जिसके तहत अपनी पत्नी को एक बार तलाक दे देने के बाद आप तब तक उससे दोबारा निकाह नहीं कर सकते जब तक वह किसी और से शादी करके उसके साथ रिश्ता नहीं बना लेती और फिर उससे तलाक नहीं ले लेती. यह प्रथा कुरान पर आधारित है और बोर्ड इससे विपरीत विचार नहीं रख सकता है.”
हालांकि पैसों के लिए चल रहे निकाह हलाला के रैकेट और महिलाओं के शोषण से जुड़े सवाल पर जिलानी ने कहा, “हलाला के मकसद से किया गया निकाह मान्य नहीं है और आरोपियों को कानून के हिसाब से गिरफ्तार किया जाना चाहिए.”

बोर्ड ने यह भी तय किया है कि देश के 10 शहरों में शरियत कोर्ट बनाए जाएंगे. पहला कोर्ट सूरत में शुरू होगा जिसका उद्घाटन 22 जुलाई को होगा. महाराष्ट्र में 9 सितंबर तक दारुल क़ज़ा और नवंबर के अंत तक शरियत कोर्ट का शुरू कर दिया जाएगा. (पढ़ेंः ऐसे होती है दारुल क़ज़ा की स्थापना)
दारुल क़ज़ा के केंद्र पारंपरिक रूप से मुस्लिम पर्सनल लॉ (शरियत) एक्ट 1937 के अंतर्गत आने वाले मामलों की सुनवाई करते हैं. ऐसे केंद्रों में लोग शादी और जमीन-जायदाद से जुड़े मामले लेकर पहुंच सकते है. फिलहाल ये सिर्फ मदरसों तक ही सीमित हैं.

शरिया का मतलब कुरान और पैगंबर मोहम्मद की सीख के आधार पर तैयार किए गए इस्लामिक कानून से है. जिलानी ने कहा, “शरियत अदालतों के असंवैधानिक होने का सवाल ही नहीं उठता है.”
सुप्रीम कोर्ट में 20 जुलाई से निकाह हलाला पर सुनवाई शुरू होने की संभावना है.
Share To:

Post A Comment:

0 comments so far,add yours