अटल बिहारी वाजपेयी ऐसे करिश्माई राजनेता थे जिन्होंने राजनीति में तो बुलंदियों को छुआ ही, साथ ही अपने 'कवि मन' से उन्होंने साथी नेताओं और आम जनता दोनों के दिलों पर राज किया. दिवंगत नेता वाजपेयी का कवि मन अक्सर उनकी कविताओं के जरिए प्रदर्शित होता था.

वाजपेयी जब संसद को संबोधित करते थे तो न सिर्फ उनके सहयोगी दल बल्कि विपक्षी पार्टियों के नेता भी उनकी वाकपटुता की प्रशंसा से खुद को रोक नहीं पाते थे. जब वह रैलियों को संबोधित करते थे तो उन्हें देखने-सुनने आई भीड़ की तालियों की गड़गड़ाहट आसमान में गुंजायमान होती थी.

लंबी बीमारी के बाद गुरुवार दिल्ली के अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) में 94 साल की आयु में वाजपेयी का निधन हुआ. पूर्व प्रधानमंत्री वाजपेयी ने अपनी कविता 'अपने ही मन से कुछ बोलें' में मानव शरीर की नश्वरता के बारे में लिखा है.

इस कविता के एक छंद में उन्होंने लिखा है- 'पृथ्वी लाखों वर्ष पुरानी, जीवन एक अनंत कहानी पर तन की अपनी सीमाएं यद्यपि सौ शरदों की वाणी, इतना काफी है अंतिम दस्तक पर खुद दरवाजा खोलें.' वाजपेयी ने एक बार अपने भाषण में यह भी कहा था, 'मनुष्य सौ साल जिए ये आशीर्वाद है, लेकिन तन की सीमा है.'

साल 1924 में ग्वालियर में जन्मे वाजपेयी की अंग्रेजी भाषा पर भी अच्छी पकड़ थी. बहरहाल, जब वह हिंदी में बोलते थे तो उनकी वाकपटुता कहीं ज्यादा निखर कर आती थी. अपने संबोधन में वह अक्सर हास्य का पुट डालते थे जिससे उनके आलोचक भी उनकी प्रशंसा से खुद को रोक नहीं पाते थे.

राजनीति में कविता लिखने का समय चाहते थे वाजपेयी
काफी अनुभवी नेता रहे वाजपेयी कोई संदेश देने के लिए शब्दों का चुनाव काफी सावधानी से करते थे. वह किसी पर कटाक्ष भी गरिमा के साथ ही करते थे. वाजपेयी के भाषण इतने प्रखर और सधे हुए होते थे कि उन्होंने इसके जरिए अपने कई प्रशंसक बना लिए. उन्हें 'शब्दों का जादूगर' भी कहा जाता था.
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