नई दिल्ली : कर्नाटक के बाद कोलकाता में विपक्ष शनिवार को एक बार फिर एकजुट होने जा रहा है। पश्चिम बंगाल में होने वाली तृणमूल कांग्रेस (TMC) की इस रैली में कांग्रेस सहित करीब दर्जन भर क्षेत्रीय दलों के नेता हिस्सा लेंगे और अपना दमखम दिखाएंगे। ममता बनर्जी (Mamata Benerjee) इस रैली के जरिए नरेंद्र मोदी सरकार के खिलाफ अपनी एकजुटता और ताकत का प्रदर्शन करना चाहती हैं। कांग्रेस सहित क्षेत्रीय दल भी यह दिखाना चाहते हैं कि वे मोदी सरकार के खिलाफ एकजुट हैं और उनके बीच कोई गतिरोध एवं मतभेद नहीं है। 
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि ममता अपनी इस मेगा रैली के जरिए खुद को क्षेत्रीय दलों की सबसे बड़ी नेता के रूप में स्थापित करना चाहती हैं और दबी जुबान में क्षेत्रीय दलों को संदेश देना चाहती हैं कि प्रधानमंत्री पद के दावेदारों की दौड़ में वह सबसे आगे हैं। ममता प्रधानमंत्री पद के लिए अपनी दावेदारी और मजबूत एवं पुख्ता बनाना चाहती हैं। 

क्षेत्रीय दलों का नेता कौन होगा या गैर-भाजपा, गैर-कांग्रेस मोर्चे की अगुवाई कौन करेग इसे लेकर अभी से खींचतान शुरू हो गई है। ममता की इस रैली को इसी से जोड़कर देखा जा सकता है। टीएमसी प्रमुख कोलकाता में बड़ी रैली कर रही हैं। इस रैली में लाखों लोगों के जुटने का दावा किया जा रहा है। रैली में उमड़ने वाले लोगों के हुजूम और विपक्ष के करीब--करीब सभी बड़े नताओं की मौजूदगी से ममता यही बताना चाहती हैं कि मोदी सरकार के खिलाफ बनने वाले किसी भी मोर्चे में उनकी पकड़ और धमक कमजोर एवं फीकी नहीं रहने वाली है। मोदी सरकार एवं उसकी नीतियों पर हमला बोलने वाले नेताओं में वह सबसे आगे हैं। इसके अलावा कांग्रेस के इतर बनने वाले क्षेत्रीय दलों के मोर्चों में भी वह सबसे कद्दावर दिखना चाहती हैं।

ममता की यह कोशिश कितनी सफल होगी यह कांग्रेस सहित क्षेत्रीय दलों से मिलने वाले उनके समर्थन पर निर्भर करेगा। पहले बात कांग्रेस की करें तो ममता बनर्जी ने कांग्रेस मुख्यमंत्रियों के शपथ ग्रहण समारोह से अपनी दूरी बनाकर रखी। अपनी रैली के लिए उन्होंने कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी और यूपीए की चेयरमैन सोनिया गांधी को न्योता दिया लेकिन कांग्रेस ने रैली के लिए अपने वरिष्ठ नेताओं मल्लिकार्जुन खड़गे एवं अभिषेक मनु सिंघवी को भेजने का फैसला किया है।
कांग्रेस के इस कदम से साफ है कि वह ममता को नाराज नहीं करना चाहती साथ ही वह उनके सियासी मंसूबों को ज्यादा तवज्जो भी नहीं देना चाहती। रही बात बसपा सुप्रीमो मायावती की तो वह भी इस रैली में हिस्सा नहीं ले रही हैं। बसपा से सतीश मिश्रा इस रैली में हिस्सा लेंगे। इस बार कोलकाता में कर्नाटक जैसा नजारा देखने को मिलेगा लेकिन ममता के इस मंच पर राहुल, सोनिया एवं मायावती नहीं होंगे। 

मई 2018 में कर्नाटक में एचडी कुमारस्वामी के शपथ ग्रहण समारोह में राहुल-सोनिया सहित करीब समूचा विपक्ष इकट्ठा हुआ था। इस कार्यक्रम में ममता और मायावती भी नजर आईं। विपक्ष का यह मंच ज्यादा ताकतवर और असरदार दिखा था लेकिन ममता के मंच से यदि राहुल, सोनिया और मायावती की दूरी है तो उसके खास राजनीति मायने हैं। मतलब साफ है कि ये तीनों नेता ममता का नेतृत्व स्वीकार करते नहीं दिखना चाहते। राजनीति में दिखने और दिखाने का भी एक मतलब होता है। राजनीति में कई बार यह दिखाने की कोशिश की जाती है कि साथ हैं भी, साथ नहीं भी हैं। कांग्रेस और बसपा ममता को यही संदेश देना चाहती हैं।
यूपी में समाजवादी पार्टी के साथ गठबंधन हो जाने के बाद खुद को ताकतवर समझ रही है। यहां लोकसभा की 80 सीटें हैं और सपा और बसपा सिद्धांत: 38-38 सीटों पर चुनाव लड़ने के लिए राजी हुए हैं। बसपा को लगता है कि सपा के सहयोग से वह अच्छी-खासी सीटें जीत सकती है। मायावती खुद को पीएम पद का दावेदार मानती हैं। ऐसे में वह खुद को छोड़कर किसी अन्य क्षेत्रीय दल के नेता का नेतृत्व स्वीकार नहीं करना चाहतीं। हालांकि, चुनाव बाद के गठबंधन की गुंजाइश सभी छोड़ रहे हैं।
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