नई दिल्ली I कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी बुधवार से उत्तर प्रदेश के चुनावी दौरे पर हैं. उन्होंने राहुल गांधी के संसदीय क्षेत्र अमेठी से अपना संपर्क अभियान शुरू किया है. प्रियंका बुधवार को लखनऊ होते हुए अमेठी पहुंचीं. एक दिन बाद गुरुवार को उन्होंने सोनिया गांधी के संसदीय क्षेत्र रायबरेली का दौरा किया. अब शुक्रवार को अयोध्या पहुंचेंगी. इससे पहले वह प्रयाग से वाराणसी तक की बोट यात्रा कर चुकी हैं. उन्होंने काशी में बाबा विश्वनाथ के दर्शन किए थे. प्रियंका का अयोध्या दौरा सबकी निगाहों में है और सवाल उठ रहे हैं कि क्या शिव के बाद वह राम की शरण में पहुंच रही हैं. हालांकि अयोध्या में वह राम लला के दर्शन करने जाएंगी या नहीं, यह तय नहीं है.  

अयोध्या में रामलला और राम मंदिर का मुद्दा अब तक बीजेपी भुनाती रही है लेकिन कांग्रेस ने इस बार रणनीति बदली है. अब कांग्रेस भी अयोध्या और मंदिर का मुद्दा वैसे ही उठा रही है जैसे बीजेपी अब तक करती रही है. बीजेपी को यह खटकना लाजिमी है. लिहाजा बीजेपी की पूरी ब्रिगेड कांग्रेस, राहुल और प्रियंका गांधी को 'राम भरोसे' बता रही है. कांग्रेस ने भी इस विरोध को भुनाना शुरू कर दिया है. राहुल गांधी देश के मंदिरों में घूम-घूम कर यह जता चुके हैं कि आज की कांग्रेस पहले वाली नहीं है जो अपनी सेकुलर छवि बचाने के लिए मंदिरों से परहेज करती थी. इसी क्रम में उनका जनेऊधारी मुद्दा भी लोगों के सामने आया. बीजेपी ने राहुल गांधी के जनेऊ पर भले कटाक्ष किया हो मगर कांग्रेस और राहुल गांधी अपनी रणनीति में सौ आना कामयाब रहे और डंके की चोट पर कहा कि मंदिरों पर किसी एक पार्टी का कब्जा क्यों.

क्रमवार देखें तो पाएंगे कि राहुल गांधी के 'मंदिर अवतार' को अब प्रियंका गांधी तेजी देने का काम कर रही हैं. इसी कड़ी में उन्होंने यूपी में पहले विंध्यवासिनी मंदिर में पूरे फैनफेयर और कैमरों के बीच पूजा-अर्चना की. इसके बाद वाराणसी स्थित बाबा विश्वनाथ के मंदिर पहुंचीं. ये वही वाराणसी है जहां से कांग्रेस के धुर विरोधी नरेंद्र मोदी सांसद हैं. प्रियंका गांधी ने वाराणसी और बाबा के दरबार में दस्तक देकर बता दिया कि नरेंद्र मोदी सांसद भले हों लेकिन आम लोगों के दिलों पर कब्जा उनका भी है.

बाबा विश्वनाथ की नगरी पहुंचना और कांग्रेस के जयकारों के बीच प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी व बीजेपी के खिलाफ ताल ठोकना कांग्रेस की उस छवि को दर्शाता है कि सीटें भले 44 पर सिमट गई हों लेकिन सियासी जज्बा 440 वाला है. चरम पर पहुंचे कांग्रेस के इस जज्बे और जोश को पहचानने के कई संकेत हैं. प्रियंका ने बाबा विश्वनाथ के दर्शन तो किए ही, वो अस्सी घाट भी गईं और निषाद समाज के लोगों से लंबी बातचीत की. निषादों को आश्वस्त किया कि कांग्रेस राज लौटता है तो उन्हें 'मुख्यधारा' से जोड़ा जाएगा. सबसे बड़ी बात उन्होंने ये कही कि कांग्रेस की सरकार बनती है तो निषादों के लिए अलग से मंत्रालय बनेगा.
अब जरा सोचिए, क्या कभी वाराणसी के सांसद नरेंद्र मोदी ने सोचा होगा कि किसी एक वर्ग या समाज के लिए मंत्रालय बनाने का हरकारा लगाया जाएगा. मगर प्रियंका गांधी ने ऐसा प्रस्ताव लोगों के समक्ष रखा तो समझा जा सकता है कि वाराणसी जीतने के लिए कांग्रेस किस कदर अपनी सियासत आगे बढ़ा रही है. जाहिर सी बात है कि बीजेपी की भी अपनी रणनीति है लेकिन कांग्रेस और उसमें फर्क है. कांग्रेस आज हर वो तरकीब अपना रही है जो 2014 में बीजेपी अपनाती थी.

कह सकते हैं कि प्रियंका गांधी के राजनीति में आने के बाद बयार बदल गई है. हमने पहले भी प्रियंका को 'मैदान' में देखा है लेकिन रूप ये नहीं था. 1999 के लोकसभा चुनाव से लेकर 2017 के यूपी विधानसभा चुनाव तक जब भी चुनाव के मौके आए प्रियंका गांधी अपनी मां सोनिया गांधी और भाई राहुल गांधी के साथ अमेठी और रायबरेली के लोगों के बीच आती रहीं, पर आज का मौका ऐसा नहीं है. अब प्रियंका की जिम्मेदारियां बढ़ गई हैं क्योंकि इस बार वे राहुल गांधी को प्रधानमंत्री बनाने के लिए कैंपेन कर रही हैं. अब वो कांग्रेस की महासचिव हैं और पूर्वी उत्तर प्रदेश की जिम्मेदारी उठा रही हैं.

साफ तौर पर प्रियंका गांधी अमेठी और रायबरेली को केंद्र में रखते हुए समूचे यूपी में आहिस्ते-आहिस्ते आगे बढ़ रही हैं. इसी के तहत शुक्रवार को रायबरेली में उनकी जनसभाएं हैं. रायबरेली के कार्यक्रम के बाद प्रियंका अयोध्या के दौरे पर जाएंगी. उन्होंने प्रचार अभियान की शुरुआत प्रयागराज से वाराणसी तक की नाव यात्रा से की है, जिसमें वो मंदिर मंदिर गई हैं. ऐसे में प्रियंका जब अयोध्या पहुंचेंगी तो हिंदुत्व की जिस पिच पर बीजेपी अब तक बल्लेबाजी करती थी, उसे प्रियंका की ओर सबसे बड़ी चुनौती मिलती दिखेगी.
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