उत्तराखंड का जोशीमठ शहर की पूरे देश में पहचान है. यह चारधाम यात्रा का गेटवे है लेकिन आजकल यह दूसरी वजह से चर्चा में है. इस शहर की जमीन धंस रही है. घऱों और सड़कों में दरारें पड़ गई है. लोग डर के मारे घर छोड़ने को मजबूर हो गए हैं.

समस्या इतनी विकराल है कि रविवार (8 जनवरी) को प्रधानमंत्री कार्यालय ने हाईलेवल बैठक की. हालांक ये समस्या अचानक नहीं आई है. इस खतरे को लेकर सरकारों को दशकों पहले आगाह किया गया था लेकिन इस पर ध्यान नहीं दिया गया. एक्सपर्ट ने इस बारे में बताया है.

दशकों पहले मिली चेतावनी

1976 में जोशीमठ को लेकर एक रिपोर्ट आई थी जिसे मिश्रा कमेटी की रिपोर्ट के नाम से जाना जाता है. सबसे पहली बार इस रिपोर्ट में जोशीमठ को संवेदनशील क्षेत्र बताया गया था. रिपोर्ट के मुताबिक जोशीमठ शहर मलबे पर बसा हुआ है. 

इसे ऐसे समझते हैं. सैकड़ों साल पहले पहाड़ पर कोई भूस्खलन या ऐसी कोई घटना हुई होगी जिसके बाद ऊपर से मिट्टी और पहाड़ खिसककर इस जगह जमा हुआ जहां आज जोशीमठ मौजूद है. धीरे-धीरे यह मजबूत होता गया और यहां बसावट होने लगी. 

कमजोर जमीन पर बसा शहर

जोशीमठ जिस जमीन के ऊपर बसा है, वह ढीली और कमजोर है. इसके नीचे की जमीन में जो सामग्री है वह मिट्टी और मलबा है. यह भले ही मजबूत नजर आता हो लेकिन असल में दूसरे पहाड़ों की तरह इसकी पकड़ मजबूत नहीं है. यहां की मिट्टी के अध्ययन से पता चलता है इस जगह पर हजारों साल पहले कोई ग्लेशियर रहा होगा.

देहरादून स्थित वाडिया इंस्टीट्यूट के डॉ. मनीष मेहता ने इंडिया टुडे से बातचीत में कहा जोशीमठ को कत्यूरी राजवंश के काल में 11वीं और 12वीं शताब्दी में बसाया गया था. यह दो नालों, कंपनी नाला और सिंधधार नाला के बीच स्थित है. साथ ही उन्होंने कहा कि यह भूकंप संवेदनशील क्षेत्र में 5 में है.

डॉ मेहता कहते हैं कि जब हमारे हाथ से चीजें निकल जाती हैं तो हम कारणों और समाधान की बात करते हैं जबकि शुरुआती संकेत मिलते ही हमें कार्रवाई शुरू कर देनी चाहिए. 

जोशीमठ में दशकों पहले संकेत मिलने के बाद उनकी अनदेखी की गई और आज नतीजा सामने दिख रहा है.

जमीन से निकल रहा पानी

जोशीमठ के कुछ इलाकों से पानी निकल रहा है. स्थानीय लोग दावा कर रहे हैं कि शहर के नीचे से एनटीपीसी सुरंगें बना रही है जिसमें आस-पास कहीं से दरार आ गई है और उसमें से पानी घुस रहा है. पानी के साथ मलबा बहने से नीचे जमीन में खाली जगह बन रही है और उससे जमीन धंस रही है. जोशीमठ के पास ही एनटीपीसी एक सुरंग बना रही है. स्थानीय लोग का दावा है कि इसके लिए अंदर विस्फोट किया जा रहा है जिसके चलते ये सब हो रहा है. हालांकि एनटीपीसी ने कहा है कि सुरंग बनाने में विस्फोट नहीं किया जा रहा है. मशीनों की मदद से ये किया जा रहा है.

विकास कार्य से असर

वाडिया इंस्टीट्यूट के डॉक्टर मेहता के मुताबिक ऐसा लगता है कि आस-पास जो विकास कार्य हो रहे हैं, उससे जो कंपन्न हो रहा है उसके चलते जमीन में कहीं दरार आ गई है. अब उन दरारों से पानी अंदर आ गया है जो धीरे-धीरे सतह के ऊपर निकलने लगा है. हालांकि वे कहते हैं कि इसके लिए गहनता से जांच करने की जरूरत है.

एक और बात समझने की है, इस इलाके के पहाड़ मजबूत चट्टानों के नहीं बने हैं. इनमें पत्थर के साथ ही काफी मात्रा में मिट्टी भी है. पेड़ पौधों के होने के चलते यह मिट्टी और पहाड़ एक दूसरे को पकड़े हुए हैं लेकिन अगर यहां कोई बड़ी हलचल होती है तो ये मिट्टी हिल जाती है जिसके चलते जमीन दरकने लगती है.

निर्माण पर लगे रोक

डॉ. मेहता कहते हैं जोशीमठ के खोखली जमीन के ऊपर बसा है. इसकी मिट्टी और मलबा कमजोर है और यह पानी की तरह बह रहा है. यही वजह है कि मिट्टी खिसक रही है और घरों में दरार पड़ रही है.

उन्होंने यह भी कहा कि इलाके में अब ऊंची इमारतों और भारी निर्माण पर रोक लगानी चाहिए वरना यह किसी दिन तबाही की वजह बनेगा.

अब क्या करना चाहिए?

एक्सपर्ट की राय मानें तो सबसे पहले यहां से जो पानी लगातार रिस रहा है उसका पता लगाया जाए कि यह किस प्रकार का है. इसके लिए पानी में मौजूद रसायनों का अध्ययन किया जाए. साथ ही यहां पर भूकंप मॉनिटर स्थापित किए जाएं जो कंपन और तरंगों को रिकॉर्ड करें.

इस बीच मुख्यमंत्री धामी जोशीमठ गए थे. उन्होंने अधिकारियों को स्थिति पर नजर रखने के लिए निर्देश दिए हैं. रविवार को राज्य के मुख्य सचिव सुखविंदर संधू भी जायजा लेने पहुंचे थे. वहीं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी खुद स्थिति पर नजर बनाए हुए हैं. रविवार को ही पीएमओ ने हाई लेवल मीटिंग ली थी जिसमें केंद्रीय टीम भेजने का भी फैसला किया गया था.

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