पुणे.ऑस्ट्रेलिया के गोल्ड कोस्ट में आयोजित कॉमनवेल्थ गेम्स में गुरुवार को भारतीय कुश्ती दल के पहलवान राहुल अवारे ने 57 किग्रा वर्ग में गोल्ड जीता है। महाराष्ट्र के बीड़ जिले के छोटे से गांव पतारी के रहने वाले राहुल का कॉमनवेल्थ तक का सफर बेहद संघर्षपूर्ण रहा है। कुश्ती के लिए राहुल को सिर्फ 10 साल की उम्र में अपना घर छोड़ना पड़ा और वे पुणे आ गए। एक साधारण किसान परिवार से आने वाले राहुल को हर महीने तकरीबन 5 से 10 हजार रुपए की जरुरत होती थी, जिसे उनके पिता ने बड़ी मुश्किलों से पूरा किया। राहुल की जीत के बाद उनके गांव में जश्न का माहौल है।

सिर्फ 7 साल की उम्र में शुरू हुआ कुश्ती का सफर
- छोटे भाई की जीत पर खुशी जताते हुए बड़े भाई गोकुल अवारे ने राहुल के कुश्ती के सफर को विस्तार से बताया। गोकुल ने बताया,"हमारे पिता बालासाहब अवारे भी स्टेट लेवल कुश्ती चैंपियन थे। लेकिन वे ज्यादातर अखाड़े में ही कुश्ती लड़ा करते थे। उन्होंने कई देसी खिताब जीते। लेकिन उनका हमेशा से सपना रहा की उनके बच्चे देश के लिए मेडल लेकर आये। इसलिए उन्हें राहुल को 7 साल और मुझे 9 साल की उम्र में कुश्ती खेलने के लिए प्रोत्साहित किया।"
- आगे गोकुल ने बताया,"कुश्ती के लिए पिताजी ने टीन शेड लगाकर खेत में ही अखाड़ा बनाया। इसी गांव से मेरी और राहुल की ट्रेनिंग शुरू हुई। लेकिन पिताजी को पता था की गांव में हमारा भविष्य नहीं है। इसलिए उन्होंने राहुल को प्रोफेशनल कुश्ती सीखने के लिए पुणे भेज दिया।"
आर्थिक तंगी से जूझना पड़ा
- गोकुल ने बताया,"राहुल के पुणे में रहने का हर महीने का खर्च 5 से 10 हजार के बीच आता था। हम एक ऐसे गांव से आते हैं जहां सालभर लगभग सूखे की स्थिति रहती है। इस कारण पानी के अभाव में फसल या तो बर्बाद हो जाती है या फिर बहुत कम होती है। इसलिए राहुल के पुणे में रहने का खर्च उठाना पिता जी के लिए बेहद कठिन रहा। कई बार तो उन्होंने लोगों से उधार लेकर राहुल का खर्चा भेजा। लेकिन राहुल ने परिवार की परेशानियों को समझा और हमें कभी निराश नहीं किया।"
गांव में जश्न का माहौल
- राहुल की जीत के बाद से उनके गांव में जश्न का माहौल है। बधाई देने के लिए दूर-दूर से लोग उनके घर आ रहे हैं। राहुल के भाई ने बताया कि जीत के बाद राहुल ने घर पर फोन किया था और पिताजी से बात भी की थी। पूरे परिवार ने उनके लौटने पर जश्न मनाने की बात कही है।
राहुल को पसंद है मराठी खाना
- राहुल के भांजे तुकाराम पोटे भी पुणे में रहते हैं और अक्सर राहुल से मिलते हैं। तुकाराम ने बताया,"राहुल को मां के हाथ का मराठी खाना बेहद पसंद है। वे अपनी डाइट का बेहद ख्याल रखते हैं। इसलिए बाहर का खाना कभी नहीं खाते हैं। राहुल को मराठी और हिन्दी फिल्मों के सांग्स पसंद है।"
कोच ने कहा- अभी अधूरा है ख्वाब
- राहुल ने 10 साल की उम्र से पुणे में अर्जुन पुरस्कार विजेता काका पवार के अंडर ट्रेनिंग ली है। राहुल की सफलता पर काका पवार ने कहा कि 2016 में राहुल का सिलेक्शन ओलंपिक के लिए नहीं हुआ था। उस दौरान उनके साथ बहुत गलत हुआ था। लेकिन इस गोल्ड मेडल ने सभी का मुंह बंद कर दिया है।
- काका पवार ने बताया कि उन्हें शुरू से ही उम्मीद थी कि राहुल कॉमनवेल्थ में गोल्ड लेकर आएंगे। काका पवार ने बताया कि राहुल की जीत से उन्हें खुशी है लेकिन अभी उनका ख्वाब अधूरा है। उन्हें असली खुशी तब होगी जब वे एशियाई खेल और ओलंपिक में पदक लेकर आएंगे।
कांटे की टक्कर में जीता गोल्ड
- गुरुवार को हुए फाइनल मुकाबले में राहुल ने पुरुषों की फ्री स्टाइल 57 किलोग्राम में कनाडा के पहलवान स्टीवन ताकाहाशी को शिकस्त दी। दोनों के बीच कांटे का मुकाबला देखने को मिला।
- मुकाबले के पहले ही मिनट में ही राहुल ने अच्छा प्रदर्शन करते हुए ताकाहाशी को पटककर दो अंक हासिल किए। हालांकि, अगले ही पल राहुल को संभलने का मौका नहीं देते हुए कनाडा के पहलवान ने पलटते हुए चार अंक ले लिए। इसके बाद राहुल ने भी ताकाहाशी पर दबाव बनाया और उन्हें रोल करते हुए छह अंक ले लिए। कनाडा के पहलवान ने भी हार नहीं मानी और राहुल को अच्छी टक्कर देते हुए दो अंक लिए और 6-6 से बराबरी कर ली।
- इसके बाद राहुल ने अपनी तकनीक को अपनाते हुए एक बार फिर ताकाहाशी को पकड़ा और फिर रोल करते हुए तीन और अंक हासिल करते हुए 9-6 से बढ़त ले ली।
- यहां राहुल को दर्द की समस्या हुई, लेकिन इसे नजरअंदाज करते हुए उन्होंने वापसी की और दो अंक और हासिल किए। मुकाबले के आखिरी के कुछ सेकेंड रह गए थे और एक बार फिर राहुल ने ताकाहाशी पर शिकंजा कस 15-7 से जीत हासिल कर भारत की झोली में 13वां स्वर्ण पदक डाल दिया।
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