नई दिल्ली I 2014 के लोकसभा चुनाव के दौरान भारतीय जनता पार्टी की ओर से विदेशों में जमा काला धन को वापस लाने के लिए कई तरह के दावे किए जाते थे. सरकार बनने के बाद भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी अपने भाषण में कई बार कहा कि ''पहले चर्चा होती थी, कितना गया.. लेकिन अब चर्चा होती है कितना आया.'' काले धन के खिलाफ अभियान चलाने की सरकार की कोशिशों को अब झटका लगा है.
स्विस बैंक ने जो ताजा आंकड़े जारी किए हैं उसमें दिख रहा है कि पिछले एक साल में भारतीयों की जमा पूंजी में करीब 50% की बढ़ोतरी हुई है. पिछले तीन साल से ये आंकड़े लगातार घट रहे थे, लेकिन अचानक 2017 में इतनी लंबी छलांग मोदी सरकार के लिए चिंता बढ़ा सकती है. विपक्ष के अलावा कई साथियों ने भी इसको लेकर सरकार को घेरा है.
नोटबंदी के बाद पहुंचा सबसे ज्यादा पैसा?
दरअसल, ये आंकड़ा इसलिए भी चौंकाता है कि क्योंकि मोदी सरकार आने के बाद लगातार तीन साल कालेधन में कमी आई थी. लेकिन 2016 में नोटबंदी का फैसले के बाद इसमें अचानक बढ़ोतरी हुई. स्विस बैंक ने जो आंकड़े जारी किए हैं वह 2017 के हैं और नोटबंदी 8 नवंबर, 2016 को लागू हुई थी. यानी साफ है कि नवंबर 2016 और 2017 के बीच सबसे ज्यादा पैसा स्विस बैंक पहुंचा. प्रधानमंत्री ने जब नोटबंदी का ऐलान किया था तब इसे कालेधन के खिलाफ सबसे बड़ी 'सर्जिकल स्ट्राइक' बताया गया था.
कैसे बढ़ता गया इतना पैसा?
# स्विस बैंक खातों में जमा भारतीय धन 2016 में 45 प्रतिशत घटकर 67.6 करोड़ फ्रैंक (लगभग 4500 करोड़ रुपए) रह गया था. बैंक की तरफ से 1987 में आंकड़े देने की शुरुआत के बाद से ये सबसे कम का आंकड़ा था.
# लेकिन 2017 में जो आंकड़े जारी किए गए उसमें अब 50 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है. स्विस बैंक खातों में सीधे तौर पर रखा गया धन 2017 में लगभग 6891 करोड़ रुपए (99.9 करोड़ फ्रैंक) हो गया. इसके अलावा प्रतिनिधियों के जरिए रखा गया पैसा इस दौरान 112 करोड़ रुपए (1.62 करोड़ फ्रैंक) रहा.
पहले क्या थी स्थिति?
ऐसा नहीं है कि स्विस बैंक में पहली बार भारतीयों की जमा पूंजी में बढ़ोतरी आई हो. इससे पहले भी कई बार आंकड़ें भारतीयों को चौंकाने वाले ही रहे हैं. स्विस बैंक खातों में रखे भारतीयों के धन में 2011 में 12%, 2013 में 43%, 2017 में 50.2% की वृद्धि हुई थी. जबकि इससे 2004 में यह धन 56% बढ़ा था. 2007 तक भारत स्विस बैंक की जमा पूंजी की लिस्ट में टॉप 50 देशों में शामिल था, लेकिन अब वह ब्रिक्स देशों से भी नीचे चला गया है.
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