नई दिल्ली: भारत में क्रिकेट के मौजूदा घरेलू सीजन का समापन रांची में खेले गए महिला अंडर-23 चैलेंजर ट्रॉफी के फाइनल के साथ हो गया। इस दौरान कुल 2024 मैच खेले गए जिसमें 37 टीमों ने हिस्सा लिया। भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड (बीसीसीआई) ने मंगलवार को एक बयान जारी कर इस बात की जानकारी दी, लेकिन बोर्ड के एक सीनियर अधिकारी ने संगठन में घरेलू सीजन को लेकर गैरपेशेवर रवैये को अपनाने का आरोप लगाया है।
बीसीसीआई के एक सीनियर अधिकारी ने आईएएनएस से बातचीत में बताया है कि महाप्रबंधक (क्रिकेट परिचालन) सबा करीम के नेतृत्व में नई टीम किस तरह अपना काम करने में विफल रही। उन्होंने साथ ही कहा है कि घरेलू क्रिकेट में कई तरह की समस्याएं आईं साथ ही सौरभ गांगली की अध्यक्षता वाली तकनीकी समिति की कई सिफारिशों को नजरअंदाज भी किया गया।
अधिकारी ने कहा, "बड़े घरेलू सीजन को लेकर हो रही बातें इस बात को नहीं छुपा सकती कि किस तरह बीसीसीआई के स्टाफ ने इसे बरबाद किया। उन्होंने योग्यता के नियम को सीजन के मध्य में ही बदल दिया। विशेष भत्ता कुछ चुनिंदा खिलाड़ियों को दिया गया, गांगुली की अध्यक्षता वाली तकनीकी समिति की सिफारिशों को नजरअंदाज किया गया, नए अंपायरों की नियुक्ति सवालिया तरीके से की गई, अंपायरों को जांचने और भर्ती करने की प्रक्रिया को किस तरह कमजोर किया गया, कई मैदानों पर वीडियो कैमरा नहीं थे जिसके कारण फुटेज रिकार्ड नहीं की जा सकी और इसी कारण अहम चीज चली गई। इस तरह के कई वाक्ये हुए हैं।"


इस सीजन खिलाड़ियों की योग्यता को लेकर जो पैमाने थे उन पर भी प्रश्न चिन्ह बना रहा। लोढ़ा समिति की सिफारिशों को ध्यान में रखते हुए इस सीजन नौ नई टीमों को घरेलू सीजन में मौका मिला जिन्होंने दूसरे राज्यों से खिलाड़ी भी अपनी टीम में शामिल किए, लेकिन इसे लेकर खिलाड़ियों की योग्यता को परखने के जो पैमाने थे उनमें काफी गड़बड़ियां सामने आईं। 

उन्होंने कहा, "सच्चाई यह थी कि अंतिम-11 में जो खिलाड़ी थे उनमें से कई की योग्यता पर सवाल थे। यह दाग बीसीसीआई के इतिहास में हमेश रहेगा। प्रशासन को इस सीजन को लेकर ज्यादा हो-हल्ला नहीं करना चाहिए।"
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