नई दिल्ली. भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर शक्तिकांत दास ने कोरोना वायरस के संकट से अर्थव्यवस्था को बचाने की कवायद में कई बड़े ऐलान किए. इन फैसलों से छोटी कंपनियों और बैंकों को तो फायदा मिलेगा. लेकिन एफडी कराने वालों पर भी इसका असर होगा. एक्सपर्ट्स का मानना है कि इससे अर्थव्यवस्था में लिक्विडिटी बढ़ेगी यानी पैसों की कमी नहीं सताएगी. ऐसे में बैंक लोन की ब्याज दरों पर अपने मार्जिन को घटा सकते हैं. इसका मतलब साफ है कि कर्ज़ की दरों में भी कमी आ सकती है. हालांकि, फिक्स्ड इनकम (एफडी) के निवेशकों को यह समझना चाहिए कि इससे ब्याज आय घट सकती है.
आइए जानें इससे जुड़े सभी बातें
(1) सबसे पहले जानते हैं कि RBI क्या क्या कदम उठाए हैं. आपको बता दें कि RBI ने रिवर्स रेपो रेट में कटौती की है. RBI ने रिवर्स रेपो रेट 0.25 फीसदी (Reverse Repo Rate) घटाकर 3.75 फीसदी कर दिया है. इस फैसले से बैंकों को RBI के पास जमा पैसे पर कम ब्याज मिलेगा. लिहाजा बैंक अब अपनी रकम को अन्य जगह इन्वेस्ट करेंगे. ऐसे में बॉन्ड्स मार्केट में तेजी आने की उम्मीद है.
RBI ने टीएलटीआरओ 2.0 का ऐलान किया है. इस फैसले के तहत 50 हजार करोड़ रुपये मिलेंगे. वैसे तो ब्याज दरों पर इसका सीधा असर नहीं पड़ेगा. अक्सर इसके लिए केंद्रीय बैंक ब्याज की दरों को काफी कम रखता है. सस्ती दरों पर कर्ज की उपलब्धता होने से बैंकों की लिक्विडिटी बढ़ जाती है. इस तरह वे इसका फायदा ग्राहकों तक पहुंचाते हैं. इस तरह की व्यवस्था का इस्तेमाल अमूमन संकट के समय किया जाता है.
इसके पहले आरबीआई की टीएलटीआरओ स्कीम का फायदा पीएसयू और बड़ी कंपनियों को दिया गया था. तब केंद्रीय बैंक ने कहा था कि अगर जरूरत पड़ी तो टीएलटीआरओ 2.0 को लाया जाएगा. इससे बैंकिंग और माइक्रोफाइनेंस सेक्टर की जरूरतों को पूरा किया जाएगा.
अर्थव्यवस्था में अतिरिक्त लिक्विडिटी से ब्याज दरों पर दबाव बन सकता है. शर्मा कहते हैं कि जहां तक निजी निवेश का सवाल है तो फिक्स्ड डिपॉजिट पर ब्याज दर 0.25 से 0.50 फीसदी तक घट सकती हैं.
आपकी एफडी के मुनाफे पर होगा असर- एक्सपर्ट्स कहते हैं कि RBI के इन कदमों से बैंक डिपॉजिट की दरों पर ब्याज दरें घटा सकते हैं. अर्थव्यवस्था में अतिरिक्त लिक्विडिटी से ब्याज दरों पर दबाव बन सकता है. फिक्स्ड डिपॉजिट पर ब्याज दर 0.25 से 0.50 फीसदी तक घट सकती हैं.
अब क्या करें निवेशक- निवेश के विकल्पों के बारे में सोचने से पहले निवेशकों को अपनी जोखिम लेने की क्षमता के बारे में देख लेना चाहिए. जब ब्याज दरों में गिरावट हो तो रिटर्न की बजाय निवेशकों को अपनी पूंजी की सुरक्षा के बारे में सोचना चाहिए.
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