कर्नाटक की राजनीति में नॉर्थ-ईस्ट की कोई अहमियत नहीं है. लेकिन शनिवार का दिन अलग था. पहली बार कर्नाटक में सत्ता पर काबिज़ कांग्रेस और मुख्य विपक्षी बीजेपी दोनों सुबह से ही टीवी से चिपके थे. इनकी नज़र थी नॉर्थ-ईस्ट के चुनाव के रुझानों पर. त्रिपुरा में जैसे ही लेफ्ट के खिलाफ बीजेपी को बढ़त मिली माहौल बदल गया. कर्नाटक में बीजेपी के नेता और उनके मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार बीएस येदियुरप्‍पा के चहरे पर मुस्कुराहट आ गई. उन्हें पता है कि दिल्ली में बैठे बीजेपी के बड़े नेताओं की अगली नजर अब कर्नाटक पर टिकी हैं.

त्रिपुरा और नगालैंड में कांग्रेस की करारी हार ने कर्नाटक में उनके नेता और कार्यकर्ताओं को हिला कर रख दिया है. अगले दो महीने में अब कर्नाटक में पार्टी के लिए करो या मरो की लड़ाई होगी.

हालांकि त्रिपुरा में कांग्रेस की हार तय थी, लेकिन फिर भी उन्हें उम्मीद थी कि शायद माणिक सरकार बीजेपी के रथ को रोक ले. ऐसा होने पर कांग्रेसी कार्यकर्ताओं का मनोबल बढ़ सकता था. लेकिन अब उम्मीदें टूट चुकी है.
बीजेपी ने त्रिपुरा से लेफ्ट के 25 साल के राज को खत्म कर दिया हैं. नगालैंड में करारी हार ने कर्नाटक में कांग्रेस के मनोबल को तोड़ दिया है.

कांग्रेस को इस बात का भी डर सता रहा है कि बीजेपी कही गोवा और मणिपुर जैसे हालात मेघालय में न पैदा कर दे. मेघालय में कांग्रेस सबसे पड़ी पार्टी के तौर पर उभरी है. लेकिन आपको याद होगा कि गोवा और मणिपुर में कांग्रेस सबसे बड़ी पार्टी ना होने के बावजूद सत्ता में नहीं है.
नतीजों पर कर्नाटक में कांग्रेस के एक बड़े नेता का कहना है "उत्तर-पूर्व शायद ही यहां पर मायने रखता है. ये हमारे लिए एक अलग दुनिया है. कर्नाटक में हमारी सरकार है. त्रिपुरा या नागालैंड जैसे हालात यहां असंभव है."

कर्नाटक में बीजेपी के प्रमुख येदियुरप्‍पा ने बातचीत करते हुए कहा "त्रिपुरा का परिणाम सबसे अहम है. उत्तर-पूर्व में दोनों ही कांग्रेस और लेफ्ट अब इतिहास बन चुकी है. ऐसा ही कर्नाटक में होगा सिद्धारमैया सरकार चुनावों में हारेगी".

11 बजे से ही राज्य के बीजेपी मुख्यालय में समारोह का दौर शुरू हो गया. कांग्रेस के नेता बार-बार ये दलील दे रहे हैं कि उत्तर-पूर्व के परिणाम का असर कर्नाटक के चुनावों पर नहीं पड़ेगा.

कर्नाटक विधानसभा चुनावों पर उत्तर-पूर्व के परिणामों का सीधा असर नहीं दिख सकता है. यहां के हालात काफी अलग हैं. लेकिन निश्चित रूप से इस नतीजे का थोड़ा फायदा बीजेपी को जरूर मिलेगा. राज्य में ईसाइयों की संख्या 3 फीसदी से ज़्यादा है. पिछले कुछ समय सें कांग्रेस के नेता बीजेपी पर ये आरोप लगा रहे थे कि वो ईसाइयों का ख्याल नहीं रखते. लेकिन अब उत्तर-पूर्व में जीत के बाद कांग्रेस बीजेपी से ज़्यादा सवाल नहीं पूछ सकती है.

दूसरा ये कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी एक बार फिर से देश के सबसे बड़े नेता के तौर पर उभरे हैं और कर्नाटक के चुनाव में भी उनका काफी अहम रोल रहने वाला है.

शायद कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी जानते थे कि उनकी पार्टी के लिए उत्तर-पूर्व में जीत का कोई मौका नहीं था. ऐसे में त्रिपुरा, नगालैंड और मेघालय के चुनाव प्रचार के दौरान कर्नाटक में पार्टी के लिए प्रचार कर रहे थे. इससे साफ दिखता है कि कांग्रेस ने कर्नाटक को गंभीरता से लिया है.

मौजूदा समय में कर्नाटक देश का एकमात्र बड़ा राज्य है जहां कांग्रेस सत्ता में है. कांग्रेस की सरकार सरकार पंजाब में भी है लेकिन वो कर्नाटक के मुकाबले काफी छोटा है.

कांग्रेस के लिए कर्नाटक में काफी अहम है उसे हर कीमत पर यहां जीत दर्ज करनी होगी. अगर वो यहां हार जाती है तो फिर राष्ट्रीय राजनीति में उनकी भूमिका लगभग खत्म हो जाएगी.

कर्नाटक में जीत से पार्टी 2019 लोकसभा चुनावों में खुद को दौड़ में रख सकती है. इसके अलवा कर्नाटक में जीत से पार्टी के लिए राजस्थान, मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ में होने वाले चुनावों में उम्मीदें बन सकती है
Share To:

Post A Comment:

0 comments so far,add yours