नई दिल्ली I प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 16वीं लोकसभा के अंतिम सत्र के आखिरी दिन बुधवार को जहां अपनी सरकार के पांच साल कार्यकाल में हुए कामकाज के बारे में बात रख रहे थे. वहीं, विपक्ष के तमाम दल लोकसभा चुनाव में मोदी को मात देने और बीजेपी को सत्ता में दोबारा से आने से रोकने के लिए चक्रव्यूह रच रहे थे. पहले दिल्ली के जंतर मंतर पर आम आदमी पार्टी (आप) ने रैली विपक्षी दल एकजुट होकर मोदी के खिलाफ हल्ला बोला. इसके बाद में देर शाम को ही शरद पवार के दिल्ली आवास पर विपक्ष के कई दिग्गजों का जमावड़ा हुआ और रणनीति बनी.  
शरद पवार के घर पर विपक्षी दलों की हुई बैठक में कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी, टीएमसी की ओर से ममता बनर्जी, सुदीप बंदोपाध्याय, डेरेक ओ ब्रायन, एनसीपी के प्रफुल्ल पटेल, दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल, नेशनल कॉन्फ्रेंस के फारुख अब्दुल्ला और टीडीपी के चंद्रबाबू नायडू शामिल थे. हालांकि, आरजेडी और वामपंथी
पार्टियों की ओर से कोई नेता वहां मौजूद नहीं रहा. बता दें कि जंतर मंतर पर हुई अरविंद केजरीवाल की रैली में आरजेडी और वामपंथी दल भी एकजुट हुए थे.
मोदी को हराने के नाम पर विरोधी पार्टियां एक छत के नीचे तो बुधवार को बैठीं. लेकिन, शरद पवार ये बताना नहीं भूले कि अभी कुछ भी फाइनल नहीं है. उन्होंने बस इसे अच्छी शुरुआत बताई. 26 फरवरी को एक बार फिर मोदी को हराने की ख्वाहिश रखने वाली तमाम पार्टियों के नेता मिलकर बात करेंगे.
मोदी के सामने दोहरी चुनौती
लोकसभा चुनाव 2019 में का सियासी मिजाज 2014 से काफी जुदा है. इस बार सत्ता में मोदी हैं और विपक्ष लगातार किसान, बेरोजगार और महंगाई जैसे मुद्दों पर उन्हें घेर रहा है. इतना ही नहीं, दूसरी तरफ विपक्षी एकजुट हो रहा है, ऐसे में मोदी के सामने सत्ता में दोबारा से वापसी की दोहरी चुनौती है.
उत्तर प्रदेश में सपा-बसपा पहले ही गठबंधन करके मोदी के लिए सिरदर्द बन चुके हैं. वहीं, बिहार और झारखंड में कांग्रेस और आरजेडी सहित तमाम छोटे दलों को साथ हाथ मिलाया है. इसके अलावा महाराष्ट्र में कांग्रेस ने एनसीपी और तमिलनाडु में डीएमके साथ गठबंधन करके बीजेपी को सत्ता में आने से रोकनी रणनीति अपनाई है.
बता दें कि 2014 के लोकसभा चुनाव में नरेंद्र मोदी ने उत्तर प्रदेश, बिहार, महाराष्ट्र और झारखंड जैसे राज्यों की ज्यादातर सीटें जीतकर केंद्र की सत्ता पर काबिज हुए थे. लेकिन इस बार विपक्षी की एकजुटता से उनका राजनीतिक समीकरण बिगड़ता हुआ नजर आ रहा है.
इसके अलावा कांग्रेस की हालत 2014 जैसी अब नहीं रही है. हाल ही में राहुल गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस ने बीजेपी से तीन राज्यों की सत्ता को छीना है. इसके अलावा जिस तरह से राहुल गांधी अपनी रैलियों में किसान और नौजवानों के रोजगार के मुद्दे को उठाने के साथ-साथ राफेल डील के बहाने मोदी को भी भ्रष्टाचारी बताने में जुटे हैं. वहीं, प्रियंका गांधी के सियासत में कदम रखने से कांग्रेसियों में एक जोश दिख रहा है.
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