नई दिल्ली: संयुक्त राष्ट्र महासभा की बैठक में आमतौर पर हर एक देश अपनी नीतियों, विश्व को सामने चुनौतियों का जिक्र करते हैं लेकिन पाकिस्तान के पीएम इमरान खान ने जिन बातों का जिक्र किया उसमें सिर्फ भारत विरोध केंद्रित था। करीब 50 मिनट के भाषण में उन्होंने इस्लामोफोबिया, कश्मीर राग और परमाणु युद्ध की बात कही। अपनी तकरीर में सिर्फ और सिर्फ भारत के विरोध की बात करते रहे। ये बात अलग है कि जिस समय वो यूएन में तकरीर कर रहे थे ठीक उसी समय सड़कों पर बलूची और मुहाजिर कार्यकर्ता अपनी व्यथा की गाथा सुना रहे थे। कहा जा रहा है कि जिस तरह से यूएन में पाकिस्तान ने अपने पक्ष को तैयार किया था उसे इमरान खान ने कमजोर माना और उसके लिए मलीहा लोधी को जिम्मेदार ठहराया। 
इमरान खान शायद इस बात को भूल गए थे कि संयुक्त राष्ट्र संघ का गठन वैश्विक शांति के लिए किया गया था।  पाकिस्तानी प्रधानमंत्री इमरान खान जब अपनी बात को सबके सामने पेश कर रहे थे तो उन्हें इस बात का अहसास नहीं रहा होगा कि भारत राइट टू रिप्लाई का इस्तेमाल करेगा। भारत ने साफ कर दिया जिसके मुल्क में रोजाना हक और हुकूक के लिए लोग सड़कों पर उतर रहे हों उसके मुंह से कश्मीर की बात शोभा नहीं देती है।  
राइट टू रिप्लाई के जरिए भारत ने पाकिस्तान को बेनकाब कर दिया औऱ अब उसकी गाज यूएन में पाकिस्तान की स्थाई प्रतिनिधि रहीं मलेहा लोधी पर गिरी है। पाकिस्तान सरकार ने उनकी जगह मुनीर अकरम को स्थाई प्रतिनिधि नियुक्त किया है। बताया जा रहा है कि इमरान खान इस बात से नाराज थे कि मलीहा लोधी सही तरीके से पाकिस्तान का पक्ष यूएन में नहीं रख पाई जिसकी वजह से उन्हें शर्मसार होना पड़ा।
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